Sunday 31 December 2017

पदरत्नाकर

[ ७२ ]
राग जोगियाताल आड़ा चौताल

भोगोंमें सुख है’—इस भारी भ्रमको हर लो, हे हरि!   सत्वर।
तुरत मिटा दो दु:खद सुखकी आशाओंको, हे करुणाकर!  ॥
मधुर तुम्हारे रूप-नाम-गुणकी स्मृति होती रहे निरन्तर।
देखूँ सदा, सभीमें तुमको, कभी न भूलूँ तुमको पलभर॥
ममता एक तुम्हींमें हो, हो तुममें ही आसक्ति-प्रीति वर।
बँधा रहे मन प्रेमरज्जुसे चारु चरण-कमलोंमें, नटवर!  ॥
दिखता रहे मधुर-मनहर मुख कोटि-कोटि शरदिन्दु-सुखाकर।
सुनूँ सदा मधुरातिमधुर मुनि-मन-उन्मादिनि मुरलीके स्वर॥
तन-मनके प्रत्येक कार्यसे पूजूँ तुम्हें सदा, हृदयेश्वर।
सहज सुहृद उदारचूड़ामणि!   दीन-हीन मुझको दो यह वर॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Saturday 30 December 2017

पदरत्नाकर

[ ७१ ]
राग गूजरीतीन ताल

जो चाहो तुम, जैसे चाहो, करो वही तुम, उसी प्रकार।
बरतो नित निर्बाध सदा तुम मुझको अपने मन-अनुसार॥
मुझे नहीं हो कभी, किसी भी, तनिक दु:ख-सुखका कुछ भान।
सदा परम सुख मिले तुम्हारे मनकी सारी होती जान॥
भला-बुरा सब भला सदा ही; जो तुम सोचो, करो विधान।
वही उच्चतम, मधुर-मनोहर, हितकर परम तुम्हारा दान॥
कभी न मनमें उठे, किसी भी भाँति, कहीं, कैसी भी चाह।
उठे कदाचित् तो प्रभु उसे न करना पूरी, कर परवाह॥
प्यारे!  यही प्रार्थना मेरी, यही नित्य चरणोंमें माँग

मिटे सभी मैं-मेरा’, बढ़ता रहे सतत अनन्य अनुराग॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Friday 29 December 2017

पदरत्नाकर

[ ७०]
राग तोड़ीतीन ताल

मेरी शक्ति थक गयी सारी, उद्यम-बलने मानी हार।
हुआ चूर पुरुषार्थ-गर्व सब, निकली बरबस करुण पुकार॥
शक्तिमान हे!  शक्ति-स्रोत हे!  करुणामय!  हे परम उदार।
शक्तिदान दे कर लो मुझको यन्त्र-रूपमें अङ्गीकार॥
हरो सभी तम तुरत, सूर्य-सम करो दिव्य आभा विस्तार।
जो चाहो सो करो, नित्य निश्शङ्क निजेच्छाके अनुसार॥
कहीं डुबा रक्खो कैसे ही, अथवा ले जाओ उस पार।
अथवा मध्य-हिंडोलेपर ही, रहो झुलाते बारंबार॥
भोग्य बना भोक्ता बन जाओ, भर्ता बनो भले सरकार।
बचे न ननु नचकहनेवाला, मिटें अहंके क्षुद्र विकार॥
कौन प्रार्थना करे, किस तरह, किसकी, फिर, हे सर्वाधार! ।
सर्व बने तुम अपनेमें ही करो सदा स्वच्छन्द विहार॥



-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Thursday 28 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६९ ]
राग भैरवीतीन ताल

कहाँ तुच्छ सब, कहाँ महत् तुम, पर यह कैसा अनुपम भाव।
बने प्रेमके भूखे, सबसे प्रेम चाहते, करते चाव॥
धन देते, यश देते, देते ज्ञान-शक्ति-बल, देते मान।
किसी तरह सब तुम्हें, ‘प्रेमदें इसीलिये सब करते दान॥
लेते छीन सभी कुछ, देते घृणा-विपत्ति, अयश-अपमान।
करते निष्ठुर चोट, चाहते—‘तुम्हें प्रेम सब दें’, भगवान॥
सभी ईश्वरोंके ईश्वर तुम बने विलक्षण भिक्षु महान।
उच्च-नीच सबसे ही तुम नित प्रेम चाहते प्रेम-निधान॥
अनुपम, अतुल, अनोखी कैसी अजब तुम्हारी है यह चाह!  ।
रस-समुद्र, रसके प्यासे बन, रस लेते मन भर उत्साह॥
रस उँड़ेल, रस भर, तुम करते स्वयं उसी रसका मधु-पान।
धन्य तुम्हारी रस-लिप्सा यह, धन्य तुम्हारा रस-विज्ञान॥
यही प्रार्थना, प्रेम-भिखारी!   प्रेम-रसार्णव!   तुमसे आज।

दान-पानकी मधुमय लीला करते रहो, रसिक रसराज!  ॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Wednesday 27 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६८ ]
राग काफीताल दीपचंदी

केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम!   देखूँ एक तुम्हारी ओर।
अर्पण कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त, विभोर॥
प्रभो!   एक बस, तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार।
प्राणोंके तुम प्राण, आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥
भला-बुरा, सुख-दु:ख, शुभाशुभ मैं, न जानता कुछ भी नाथ!  ।
जानो तुम्हीं, करो तुम सब ही, रहो निरन्तर मेरे साथ॥
भूलूँ नहीं कभी तुमको मैं, स्मृति ही हो बस, जीवनसार।
आयें नहीं चित्त-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥
एकमात्र तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक।
एक प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित सङ्गी एक॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 



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Tuesday 26 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६७ ]
राग जौनपुरीतीन ताल

सबमें सब देखें निज आत्मा, सबमें सब देखें भगवान।
सब ही सबका सुख-हित देखें, सबका सब, चाहें कल्यान॥
एक दूसरेके हितमें सब करें परस्पर निज-हित-त्याग।
रक्षा करें पराधिकारकी, छोड़ें स्वाधिकारकी माँग॥
निकल संकुचित सीमासे स्वकरे विश्वमें निज विस्तार।
अखिल विश्वके हितमें ही हो स्वार्थशब्दका शुभ संचार॥
द्वेष-वैर-हिंसा विनष्टहों, मिटें सभी मिथ्या अभिमान।
त्याग-भूमिपर शुद्ध प्रेमका करें सभी आदान-प्रदान॥
आधि-व्याधिसे सभी मुक्त हों, पायें सभी परम सुख-शान्ति।
भगवद्भाव उदय हो सबमें, मिटे भोग-सुखकी विभ्रान्ति॥
परम दयामय!   परम प्रेममय!   यही प्रार्थना बारंबार।

पायें सभी तुम्हारा दुर्लभ चरणाश्रय, हे परम उदार!  ॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Monday 25 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६६ ]
राग बिहागतीन ताल

करुणामय!  उदार चूड़ामणि!  प्रभु!  मुझको यह दो वरदान।
देखूँ तुम्हें सभीमें, सभी अवस्थाओंमें हे भगवान॥
शब्द मात्रमें सुन पाऊँ मैं नित्य तुम्हारा ही गुण-गान।
वाणीसे गाऊँ मैं गुणगण, नाम तुम्हारे ही रसखान॥
इन्द्रिय सभी सदा पुलकित हों पाकर मधुर तुम्हारा स्पर्श।
कर्म नित्य सब करें तुम्हारी ही सेवा, पावें उत्कर्ष॥
बुद्धि, चित्त, मन रहें सदा ही एक तुम्हारी स्मृतिमें लीन।
कभी न हो पाये विचार-संकल्प-मनन, प्रभु!   तुमसे हीन॥
सदा तुम्हारी ही सेवामें सब कुछ रहे सदा संलग्न।
यही प्रार्थनारहूँ तुम्हारे पद-रति-रसमें नित्य निमग्न॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Sunday 24 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६५ ]
राग भिन्नषड्‍जतीन ताल

प्रभो!   मिटा दो मेरा सारा, सभी तरहका मद-अभिमान।
झुक जाये सिर प्राणिमात्रके चरणोंमें, तुमको पहचान॥
आचण्डाल, शृगाल, श्वान भी हों मेरे आदरके पात्र।
सबमें सदा देख पाऊँ मैं मृदु मुसकाते तुमको मात्र॥
सबका सुख-सम्मान परम हित ही हो, मेरी केवल चाह।
भूलूँ अपनेको सब विधि मैं, रहे न तनकी सुधि-परवाह॥
पूजूँ सदा सभीमें तुमको यथायोग्य कर सेवा-मान।
बढ़ती रहे वृत्ति सेवाकी, बढ़ती रहे शक्ति-निर्मान॥
परका दु:ख बने मेरा दुख, सुखपर हो परका अधिकार।
बन जाये निज हित पर-हित ही, सुखकी हो अनुभूति अपार॥
आर्त प्राणियोंको दे पाऊँ सदा सान्त्वना-सुखका दान।

उनके दु:ख-नाशमें कर पाऊँ मैं समुद आत्म-बलिदान॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Saturday 23 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६४ ]
राग भूपालतोड़ीतीन ताल

बन जाओ तुम मेरे सब कुछ जप-तप, ध्यान, ज्ञान-विज्ञान।
बन जाओ तुम मेरे साधन-साध्य, यज्ञ-व्रत, संयम-दान॥
बन जाओ तुम मेरे शम-दम, श्रद्धा, समाधान, शुचि योग।
बन जाओ तुम मेरे मन-मति, अहंकार, इन्द्रिय, सब भोग॥
बन जाओ तुम मेरे प्राणोंके रहस्य, जीवनके मर्म।
बन जाओ तुम मेरे वस्त्राभूषण, खान-पान गृह-धर्म॥
स्पर्श तुम्हारा मिले सर्वदा सबमें, सभी ठौर अविराम।

मेरे तुम हो, मेरे तुम हो, सभी भाँति, हे प्राणाराम!  ॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Friday 22 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६३ ]
राग जोगताल दीपचंदी

बिना याचनाके ही देते रहते नित्य शक्ति तुम नाथ! 
करते सदा सँभाल, छिपे तुम अविरत रहते मेरे साथ॥
देते तुम निर्भयता, नित्य निरामयता, निज आश्रय-दान।
देते शुभ विचार, शुभ चिन्तन, शुभ जीवन, शुभ कर्म महान॥
देते प्रेम प्रेम-सागर!   तुम देते स्वार्थहीन अनुराग।
देते सुख शाश्वत आत्यन्तिक मिटा सभी दु:खोंके दाग॥
एक चाहते, इन सबके बदलेमें तुमअविचल विश्वास।
पर मैं हीन उसीसे, तब भी होता नहीं कदापि निराश॥
तुम्हीं मुझे विश्वास-दान दो, तुम्हीं करो मेरा उद्धार।

ख्यात पतित-पावन, पामर-प्रेमी तुम, हे प्रभु!   परम उदार॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Thursday 21 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६१ ]
राग भीमपलासीताल मूल

करो प्रभु!   ऐसी दृष्टि-प्रदान।
देख सकूँ सर्वत्र तुम्हारी सतत मधुर मुसकान॥
हो चाहे परिवर्तन कैसा भीअति क्षुद्र, महान।
सुन्दर-भीषण, लाभ-हानि, सुख-दु:ख, मान-अपमान॥
प्रिय-अप्रिय, स्वस्थता-रुग्णता, जीवन-मरण-विधान।
सभी प्राकृतिक भोगोंमें हो भरे तुम्हीं भगवान॥
हो न उदय उद्वेग-हर्ष कुछ, कभी दैन्य-अभिमान।
पाता रहूँ तुम्हारा नित संस्पर्श बिना-उपमान॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Wednesday 20 December 2017

पदरत्नाकर

[ ६२ ]
राग जैतकल्याणताल मूल

आते हो तुम बार-बार प्रभु!   मेरे मन-मन्दिरके द्वार।
कहते—‘खोलो द्वार, मुझे तुम ले लो अंदर करके प्यार
मैं चुप रह जाता, न बोलता, नहीं खोलता हृदय-द्वार।
पुन: खटखटाकर दरवाजा करते बाहर मधुर पुकार॥
खोल जरा साकहकर यों—‘मैं, अभी काममें हूँ, सरकार।
फिर आना’—झटपट मैं घरके कर लेता हूँ बंद किंवार॥
फिर आते, फिर मैं लौटाता, चलता यही सदा व्यवहार।
पर करुणामय!  तुम न ऊबते, तिरस्कार सहते हर बार॥
दयासिन्धु!  मेरी यह दुर्मति हर लो, करो बड़ा उपकार।
नीच-अधम मैं अमृत छोड़, पीता हालाहल बारंबार॥
अपने सहज दयालु विरदवश, करो नाथ!   मेरा उद्धार।
प्रबल मोहधारामें बहते नर-पशुको लो तुरत उबार॥



-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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