Sunday, 16 October 2011

प्रार्थना--मेरे प्राणों के प्राण !

मेरे प्राणों के प्राण !
                                      भोगों में सुख नहीं है, यह अनुभव बार-बार होता है ; फिर भी मेरा दुष्ट मन उन्हीकी ओर दोड़ता है | बहुत समझाने की कोशिश करता हूँ , परन्तु नहीं मानता | तुम्हारे स्वरुप चिंतन में लगाना चाहता हूँ , कभी कभी कुछ लगता सा दीखता भी है , परन्तु असल में लगता नहीं| मैं तो जतन करके हार गया मेरे स्वामी ! अब तुम अपनी कृपा शक्ति से इसे खीच लो | मुझे एसा बना दो कि मई सब प्रकार से तुम्हारा ही हो जाऊँ| धन, ऐश्वर्य, मान जो कोई भी तुम्हारी और लगने में बाधक हों उन्हें बलात मुझसे छीन लो | मुझे चाहे रह का भिखारी बना दो , चाहे सबके द्वारा तिरिस्कृत करा दो , परन्तु अपनी पवित्र स्मृति मुझे दे दो | मई बस तुम्हारा स्मरण करता रहूँ | मेरे सुख दुःख , हानि-लाभ , सब कुछ तुम्हारी स्मृति में समा जाय| वे चाहे जैसे आयें - जाएँ, मै सदा तुम्हारे प्रेम में डूबा रहूँ|
 
प्रार्थना page no 22 
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Ram