एक भरोसो तेरौ
अब हरि! एक भरोसो तेरौ।
नहिं कछु साधन ग्यान-भगति कौ,
नहिं बिराग उर हेरौ॥
अघ ढोवत अघात नहिं कबहूँ, मन बिषयन कौ चेरौ।
इंद्रिय सकल भोगरत संतत, बस न चलत
कछु मेरौ॥
काम-क्रोध-मद-लोभ-सरिस अति प्रबल
रिपुन तें घेरौ।
परबस पर्यौ, न गति निकसन
की जदपि कलेस घनेरौ॥
परखे सकल बंधु, नहिं कोऊ बिपद-काल
कौ नेरौ।
दीनदयाल दया करि राखउ, भव-जल बूड़त
बेरौ॥
प्रेम भगति निष्काम
चहौं बस एक यहीं श्रीराम।
अबिरल अमल अचल अनपाइनि प्रेम-
भगति निष्काम॥
चहौं न सुत-परिवार, बंधु-धन, धरनी,
जुवति ललाम।
सुख-वैभव उपभोग जगत के चहौं न
सुचि सुर-धाम॥
हरि-गुन सुनत-सुनावत कबहूँ, मन न होइ
उपराम।
जीवन-सहचर साधु-संग सुभ, हो संतत
अभिराम॥
नीरद-नील-नवीन-बदन अति सोभामय
सुखधाम।
निरखत रहौं बिस्वमय निसि-दिन, छिन
न लहौं बिश्राम॥
-श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार
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