Tuesday 18 October 2011

चैतन्य चरितावली

अपने आप को तृण से भी नीचा  समझना चाहिए तथा तरु से भी अधिक सहनशील बनना चाहिए | स्वयं तो सदा अमानी ही बने रहना चाहिए , किन्तु दूसरों को सदा सम्मान प्रदान करते रहना चाहिए | अपने को एसा बना लेने पर ही श्रीकृष्णकीर्तन के अधिकारी बन सकते हैं | क्योंकि श्रीकृष्णकीर्तन प्राणियों के लिए कीर्तनीय  वस्तु है 
- चैतन्य चरितावली - पेज -१२५
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram