Wednesday 23 November 2011

।। सत्संग-सुधा ।।

  1. 'पुत्र , स्त्री और धनसे सच्ची तृप्ति नहीं हो सकती ! यदि होती तो अब तक किसी -न - किसीयोनीमें हो ही जाती! सच्ची तृप्तिका विषय हैं केवल एक परमात्मा, जिसके मिल जानेपर जिवसदाके लिए तृप्त हो जाता हैं !'
  2. ' दुःख मनुष्यत्वके विकासका साधन हैं ! सच्चे मनुष्यका जीवन दुःख में ही खिल उठता हैं! सोनेका रंग तापानेपर ही चमकता हैं !
  3. ' 'सर्वत्र परमात्माकी मधुर मूर्ति देखकर आनंदमें मग्न रहो ; जिसको सब जगह उसकीमूर्ति दिखती हैं , वह तो स्वयं आनंदस्वरूप ही हैं ! ' 'आनंदकी लहरें' पुस्तक से
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram