Sunday, 27 November 2011






१. दुसरेके पापोंको प्रकाश करने के बदले सुहद् बनकर उनको ढंको! सुई छेद करती है, पर सूत  अपने शारीरका अंश देकर भी उस छेदको भर देता है! इसी प्रकार दुसरेके छिद्रोंको भर देनेके लिए अपना शारीर अर्पण कर दो, पर छिद्र न करो! धागा बनो सुई नहीं ! 


२. भगवानको साथ रखकर काम करनेसे ही पापोंसे रक्षा और कार्यमें सफलता होती है!


३. वैरी अपना मन ही है, इसे जीतनेकी कोशिश करनी चाहिए ! न्याय और धर्मयुक्त शत्रुको भी अन्याय और अधर्मयुक्त मित्रसे अच्छा समझना चाहिए! 


४. अपनी स्वतन्त्रता बचानेमें दूसरेको परतन्त्र बनाना सर्वथा अनुचित है! 


५. अगर आप दुसरेको चुपचाप बैठाकर अपनी बात सुनाना और समझाना पसंद करते हैं तो इसी तरह उसकी बात सुननेके लिए आपको भी तयार रहना चाहिए! 


६. अगर आप दूसरेको सहनशील देखना चाहते हैं तो पहले खुद शहनशील बनिए! 


७. अगर किसी दुसरेके मनके विरुद्ध कोई कार्य करनेमें आप अपना अधिकार मानते हैं तो उसका भी ऐसा ही समझिये !

If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram