याद रखो कि उपकार या सेवा करनेवालेके प्रति कृतज्ञ होकर मनुष्य जगत् की एक बड़ी सेवा करता है, क्योंकि इससे उपकार करनेवालेके चित्तको सुख पहुँचता है, उसका उत्साह बढ़ जाता है और उसके मनमे उपकार या सेवा करनेकी भावना और भी प्रबल हो उठती है! कृतज्ञके प्रति परमात्मा की प्रसन्नता और कृत्घ्नके प्रति कोप होता है! इससे कृतज्ञ बनो और उपकारीके उपकारको कभी न भूलो!
हमें जो दूसरोंमें दोष दिखायी देते हैं, इसका प्रधान कारण अक्सर हमारे चित्तकी दूषित वृत्ति ही होती है! अपने चित्तको निर्दोष बना लो, फिर जगत् में दोषी बहुत ही कम दीखेंगे!
अपने दोषोंको देखनेकी आदत डालो, बड़ी सावधानीसे ही अपने मनके दोषोंको देखो, तुम्हें पता लगेगा कि तुम्हारा मन दोषोंसे भरा है, फिर दूसरोंके दोष देखनेकी तुम्हें फुरसत नहीं मिलेगी !
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