पौष कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०६८, बुधवार
घंटेभरके लिये भी कोई आदमी तुमसे मिले तो अपने प्रेमपूर्ण सरल व्यवहारसे उसके हृदयमें अमृत भर दो, सावधान रहो, तुम्हारे पाससे कोई विष न ले जाय! हृदयसे विषको सर्वथा निकालकर अमृत भर लो और पद-पदपर केवल वही अमृत वितरण करो!
वर्ण, जाती, विद्या, धन या पदमें बड़े हो, इसलिये अपनेको बड़ा मत समझो; याद रखो, सबमें एक ही राम रम रहा है! छोटा-बड़ा व्यवहार है न कि आत्मा !
व्यवहारमें सब प्रकारकी समता असम्भव और हानिकर है, इससे व्यवहारमें आवश्यकतानुसार विषमता रखते हुए भी मनमें समता रखो ! आत्मरूपसे सबको एक-समझो! किसीको अपनेसे छोटा समझकर उससे घृणा न करो, न अपनेमें बड़प्पनका अभिमान ही आने दो !
बड़ा वही है, जो अपनेको सबसे छोटा मानता है! यह मंत्र सदा स्मरण रखो !
0 comments :
Post a Comment