भूल जाओ
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सम्भव है कि उससे किसी परिस्थितिमें पड़कर भ्रमसे ऐसा काम बन गया हो, जिससे तुम्हें कष्ट पहुँचा हो, परन्तु अन वह अपने कियेपर पछताता हो, उसके हृदयमें पश्चातापकी आग जल रही हो और वह संकोचमें पड़ा हुआ हो, ऐसी अवस्थामें तुम्हारा कर्त्तव्य है कि उसके साथ प्रेम करो, अच्छे -से अच्छा व्यवहार करो! उससे स्पष्ट कह दो कि भाई ! तुम पश्चाताप क्यों कर रहे हो? तुम्हारा इसमें दोष ही क्या है ? मुझे जो कष्ट हुआ है सो मेरे पूर्वकृत कर्मका फल है ! तुमने तो मेरा उपकार किया है जो मुझे अपना कर्मफल भुगातनेमें कारण बने हो, संकोच छोड़ दो ! तुम्हारे सच्चे हृदयकी इन सच्ची बातोंसे उसके हृदयकी आग बुझ जायगी, वह चेतेगा,आइन्दे किसीका बुरा न करेगा ! यदि वास्तवमें कुबुद्धिवश उसने जानकार ही तुम्हें कष्ट पहुँचाया होगा और इस बातसे उसके मनमें पश्चातापके बदले आनन्द होता होगा तो तुम्हारे अच्छे बर्ताव और प्रेम-व्यव्हारसे उसके हृदयमें पश्चाताप उत्पन्न होगा, तुम्हारी महत्ता के सामने उसका सिर आप ही झुक जायगा ! उसका ह्रदय पवित्र हो जायगा! यह निश्चय है! कदाचित् ऐसा न हो तो भी तुम्हारा कोई हर्ज नहीं, तुम्हारा अपना मन तो सुन्दर प्रेमके व्यवहारसे शुद्ध और शीतल रहेगा ही !
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