पौष शुक्ल पूर्णिमा, वि.सं.-२०६८, सोमवार
मान-बड़ाईके मोलमें धर्मको न दो, मान-बड़ाईको पैरोंतले कुचल डालो, पर धर्मको बचाओ!
धन,मकान,मनुष्य,शरीर आदिके बलपर न इतराओ, यह सारा बल पलभरमें नष्ट हो सकता है, सच्चा बल ईश्वरीय बल है, उसीको अर्जन करो!
जहाँ अस्पताल और वैध -डाक्टर ज्यादा हैं, सामझो की वहाँके मनुष्योंका शारीरिक पतन हो चूका है! जहाँ वकील ज्यादा हों और कचहरीमें भीड़ रहती हो, समझो की वहाँके मनुष्योंकी ईमानदारी प्रायः नष्ट हो चुकी है और जहाँ गन्दा साहित्य बिकता हो, समझो कि वहाँ लोगोंका नैतिक पतन हो चूका है !
केवल दवा और अस्पतालोंसे ही रोगोंका समूल नाश नहीं होता! रोगोंका समूल नाश तो इन्द्रियसंयम और मनकी सुद्धि होनेपर होता है! इन्द्रियसंयम और मनः सुद्धि ऐसी दवा है कि इनसे शारीरिक स्वास्थ्य तो मिलता ही है, पारमार्थिक स्वास्थ्यकी भी प्राप्ति होती है! अतः इन्द्रियोंको वशमें करने और मनको सुद्ध बनानेका निरंतर प्रयत्न करते रहो!
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