Friday 24 February 2012

अमृत कण

१.भगवत्प्रेम ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य समझना और इसे हर हालतमें निरन्तर लक्ष्य में रखकर ही सब काअम करना।
२.जहाँतक बने, सहज ही स्वरूपतः भोग-त्याग तथा भोगासक्तिका त्याग करना। जगत् के किसीभी प्राणी पदार्थ-परिस्थितिमें राग न रखना।
३. अभिमान,मद,गर्व आदिको तनिक-सा भी आश्रय न देकर सदा अपने को अकिञ्चन, भगवानके सामने दीनातिदीन मानना।
४.कहीं भी ममता न रखकर सारी ममता एकमात्र भगवान प्रियतम श्रीकृष्ण के चरणोंमें केन्द्रित करना।
५.जगतके सारे कार्य उन भगवानकी चरण-सेवाके भावसे ही करना।
६.किसीभी प्राणीमें द्वेष-द्रोह न रखकर, सबमें श्रीराधामाधवकी अभिव्यक्ति मानकर सबके साथ विनयका, यथासाध्य उनके सुख-हित-सम्पादनका बर्ताव करना। सबका सम्मान करना,पर कभी स्वयं कभी मान न चाहना,न कभी स्वीकार करना।
(शेष अगले ब्लाग में)
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Ram