प्रमी भक्त उद्धव : ...... गत ब्लॉग से आगे....
हम भला उन्हें कैसे भूल सकती हैं? हे नाथ, हे रमानाथ, हे व्रजनाथ, हे दीनबन्धो! हम दुःखके समुद्रमें डूब रही हैं! हमें बचाओ! हमारा उद्धार करो!
श्रीकृष्णके संदेशोंसे गोपियोंकी विरहज्वाला बहुत कुछ शान्त हुई! वे उद्धवको श्रीकृष्णस्वरुप मानकर उनका सत्कार करने लगीं! उन्होंने कहा -' उद्धव! तुम राधिकाके पास चलो! भगवान् के विरहमें उनकी क्या दशा हो रही है, चलकर देखो! वे मर-मरकर जीती हैं, जी-जीकर मरती है! चिंता, जागरण, मूर्छा, प्रलय इन्हींका क्रम चालू रहता है, वे कभी मत्त हो जाती हैं, कभी मोहित हो जाती हैं, चलो उनके दर्शन करो, उनके चरणोंमें सर नवाकर कुछ सीखो! उद्धवने उनके साथ श्रीराधाके पास जानेके लिये प्रस्थान किया!
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