प्रमी भक्त उद्धव : ...... गत ब्लॉग से आगे....
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सारे जगतमें आत्मा भगवन श्रीकृष्ण हैं! यह जगत तभी सुखी होता हैं, शांति पाता हैं, जब अपनी आत्मा भगवान् की सन्निधिका अनुभव करता है! बिना उनके इसमें सुख नहीं, शांति नहीं, आनंद नहीं! परन्तु श्रीकृष्णकी आत्मा क्या है, कौन- सी ऐसी वस्तु है, जिसके बिना श्रीकृष्ण भी छटपटाते रहते हैं और जिसे पाकर उनका आनंद अनंत-अनंत गुना बढ़ जाता है! वह हैं श्रीराधा! श्रीराधा ही श्रीकृष्णकी आत्मा हैं और उन्हींके साथ रमण करनेके कारण श्रीकृष्णको आत्माराम कहा गया है! श्रीकृष्णके बिना राधा प्राणहिन हैं और राधाके बिना श्रीकृष्ण आनंदहिन हैं! ये दोनों कभी अलग होते ही नहीं! अलग होनेकी लीला करते हैं और इसलिये करते हैं कि लोग परम प्रेमका, परम आनंदका साक्षात् दर्शन करें! इनके दर्शन श्रीकृष्णमें, श्रीराधामें ही सम्पूर्ण रूपसे प्राप्त हो सकते हैं!
जबसे श्रीकृष्ण मथुरा गये, तबसे राधाकी विचित्र दशा थी! रातको नींद नहीं आती, दिनको शान्तिसे बैठा नहीं जाता, कभी वृत्तियाँ लय हो जाती हैं तो कभी मूर्छित! कभी पागल-सी होकर नाना प्रकारके प्रलाप करती हैं तो कभी सुरीली वानिके तारोंको छोड़कर मुरलीमनोहर श्यामसुन्दरके गुनानुवादोंका गायन करती हैं! एक-एक पल बड़े दुःख से किसी प्रकार व्यतीत करती हैं और इतनी बेसुध रहती हैं कि रात बीत गयी, दिन बीत गया, इन बातोंका उन्हें पतातक नहीं चलता! आँसुओंकी धारा बहती रहती है, समझानेसे, सान्त्वना देनेसे उनकी पीड़ा और भी बढ़ जाती है!
उद्धव जिस समय उनके पास पहुँचे उस समय वे मूर्छित थी! उद्धवने उन्हें जाकर देखा तो वे गदगद हो गये, भक्तिसे उनकी गरदन झुख गयी, सारे शरीरमें रोमांच हो आया! वे श्रद्धाके साथ स्तुति करने लगे! उन्होंने कहा - 'देवी! मैं तुम्हारे चरणकमलोंकि वंदना करता हूँ!
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