Thursday 1 March 2012




गत ब्लॉग से आगे... 


भगवान् श्रीकृष्ण वृन्दावनसे मथुरामें आये, कंसका उद्धार हुआ और संस्कारसंपन्न होकर वे उज्जयिनीके गुरुकुलमें अध्ययन करने चले गये! जब वे वहाँसे लौटे और मथुरामें रहने लगे तब उद्धव प्रायः उनके साथ ही रहते थे! वे श्रीकृष्णके साथ ही सोते, श्रीकृष्णके साथ ही बैठते, उनके साथ ही टहलते, उनके साथ ही स्नान करते, मनोरंजन और भोजन भी साथ ही करते! उन्होंने अपना ह्रदय खोलकर श्रीकृष्णके सामने रख दिया था, वे श्रीकृष्णके एक अन्तरंग सखा थे! उन्हें भगवान् के दर्शनमें, संनिद्धिमें, आलापमें और आज्ञापालनमें इतना आनंद आता कि वे सारे जगतको भूले रहते! श्रीकृष्णके साथ उनका सम्बन्ध सखाका सम्बन्ध था, वे श्रीकृष्णके  एकान्त -प्रेमी थे!


भगवान् किस उद्देश्यसे कौन-सी लीला करते हैं, इस बात को स्वयं भगवान् जानते हैं या उनके कृपापात्र  संत जानते हैं! हम लोग तो उस लीलाका केवल बाह्यरूप देखते हैं और अपनी बुद्धिके अनुसार उसका अर्थ कर लेते  हैं! भगवान् ने  एक दिन ऐसी ही लीला रची! पता नहीं गोपियोंके प्रेमसे आकर्षित होकर रची, अपनी दयालुतासे रची, उद्धवके हितके लिए रची अथवा गोपियोंका प्रेम प्रकाशमें लाकर उससे जगतका कल्याण करनेके लिये रची! सभी बातें ठीक हैं, भगवान् की लीलामें भक्तोंकी अभिलाषा, भगवान् की दयालुता, किसी भक्तका हित और जगतका कल्याण रहता ही हैं! हाँ, तो भगवान् ने एक लीला रची!   
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Ram