Thursday 10 May 2012

भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य


वर्षाकालीन मेघ के समान परम सुन्दर श्यामल शरीर पर मनोहर पीताम्बर फहरा रहा है ! बहुमूल्य वैदूर्यमणि किरीट और कुंडल की  कान्ति से सुन्दर-सुन्दर घुंघराले बाल सूर्य की किरणों के समान चमक रहे हैं ! कमर में चमचमाती करघनी की लड़ियाँ लटक रही हैं ! बाँहों में बाजूबंद और कलाईयों में कंकण शोभायमान हो रहे हैं ! इन सब आभूषणों से सुशोभित बालक के अंग-अंग से अनोखी छटा छिटक रही है ! जब वासुदेवजी ने देखा कि मेरे पुत्र के रूप में तो स्वंयं भगवान ही आये हैं, तब पहले तो उन्हें असीम आश्चर्य हुआ; फिर आनंद से उनकी ऑंखें खिल उठीं ! उनका रोम-रोम परमानन्द में मग्न हो गया ! श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाने कि उतावली   में उन्होंने उसी समय ब्राह्मणों के लिए दस हज़ार गायों का संकल्प कर दिया !


श्री प्रेम-सुधा-सागर   
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