Monday, 21 May 2012

ब्रह्माजी का मोह और उसका नाश





रसिक संतों की वाणी,कान, और ह्रदय भगवान् की लीला के गान,श्रवण और चिंतन के लिए ही होते हैं - उनका यह स्वाभाव ही होता है कि वे क्षण-प्रतिक्षण भगवान् की लीलाओं को अपूर्व रसमयी और नित्य-नूतन अनुभव करते रहें ! यद्यपि भगवान् की यह लीला अत्यंत रहस्यमयी है, तुम एकाग्र चित्त से श्रवण करो ! भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने साथी ग्वालबालों को मृत्युरूप अघासुर के मुंह से बचा लिया ! इसके बाद वे उन्हें यमुना के पुलिन पर ले आये और उनसे कहने लगे कि यमुना जी का यह पुलिन अत्यंत रमणीय है ! हम लोगों के खेलने के तो यहाँ सभी सामग्री विद्यमान है ! एक ओर रंग-बिरंगे कमल खिले हुए हैं तो दूसरी ओर सुन्दर-सुन्दर पक्षी बड़ा ही मधुर कलरव कर रहे हैं ! अब हमलोगों को यहाँ भोजन कर लेना चाहिए, क्योंकि दिन बहुत चढ़ आया है और हम लोग भूख से पीड़ित हो रहे हैं ! बछड़े पानी पीकर समीप ही धीरे-धीरे हरी-हरी घास चरते रहें !
ग्वालबालों ने एक स्वर से कहा - 'ठीक है, ठीक है' ! वे अपने-अपने छीके खोल-खोलकर  भगवान् के साथ बड़े आनंद से भोजन करने लगे ! सबके बीच में भगवान् श्रीकृष्ण बैठ गए ! सबके मुंह श्रीकृष्ण की ओर थे और सबकी ऑंखें आनंद से खिल रही थीं ! कोई किसी को हंसा देता, तो कोई स्वयं ही हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाता ! इस प्रकार वे सब भोजन करने लगे ! और स्वर्ग के देवता आश्चर्यचकित होकर यह अद्भुत लीला देख रहे थे !
उसी समय उनके बछड़े हरी-हरी घास के लालच से घोर जंगल में बड़ी दूर निकल गए ! जब ग्वालबालों का ध्यान उस ओर गया, तब तो वे भयभीत हो गए ! उस समय अपने भक्तों के भय को भगा देनेवाले भगवान्  श्रीकृष्ण ने कहा - 'मेरे प्यारे मित्रों ! तुमलोग भोजन करना बंद मत करो ! मैं अभी बछड़ों को लिए आता हूँ" ! ग्वालबालों से इस प्रकार कहकर भगवान् श्रीकृष्ण अपने तथा साथियों के बछड़ों को ढूँढने चल दिए ! ब्रह्माजी पहले से ही आकाश में उपस्थित थे ! उन्होंने  पहले तो बछड़ों को और भगवान् श्रीकृष्ण के चले जाने पर ग्वालबालों को भी अन्यत्र  ले जाकर रख दिया और स्वयं अंतर्धान हो गए ! अंतत: वे जड़ कमल की ही तो संतान हैं !   

श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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Ram