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जिनके चरणकमल की रज का सभी लोकपाल अपने किरीटों के द्वारा सेवन करते हैं, अक्रूरजी ने गोष्ट में उनके चरण चिन्हों के दर्शन किये l उन चरण चिन्हों के दर्शन करते ही अक्रूरजी के ह्रदय में इतना आह्लाद हुआ कि वे अपने को सँभाल न सके, विह्वल हो गए l प्रेम के आवेग से उनका रोम-रोम खिल उठा l नेत्रों में आंसू भर आये और टप-टप टपकने लगे l वे रथ से कूदकर उस धूलि में लोटने लगे और कहने लगे - 'अहो ! यह हमारे प्रभु के चरणों कि रज है' l यहाँ तक अक्रूरजी के चित्त कि जैसी अवस्था रही है, यही जीवों के देह धारण करने का परम लाभ है l इसलिए जीव मात्र का यही परम कर्त्तव्य कि दम्भ, भय और शोक त्यागकर भगवान् की मूर्ति (प्रतिमा, भक्त आदि) चिन्ह, लीला, स्थान तथा गुणों दर्शन-श्रवण आदि के द्वारा ऐसा ही भाव सम्पादन करें l
ब्रज में पहुँच कर अक्रूरजी ने श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाइयों को गाय दुहने के स्थान में विराजमान देखा l उनके नेत्र शरत्कालीन कमल के समान खिले हुए थे l उन्होंने अभी किशोर अवस्था में प्रवेश ही किया था l उनके चरणों में ध्वजा, वज्र , अंकुश और कमल के चिन्ह थे l उनकी एक-एक लीला उदारता और सुन्दर कला से भरी थी l उन्हें देखते ही अक्रूरजी प्रेमावेग से अधीर हो कर रथ से कूद पड़े और भगवान् श्रीकृष्ण तथा बलराम के चरणों के पास साष्टांग लोट गए l भगवान् के दर्शन से उन्हें इतना आह्लाद हुआ कि उनके नेत्र आँसू से भर गए l शरणागत वत्सल भगवान् श्रीकृष्ण उनके मन का भाव जान गए l उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से चक्रांकित हाथों के द्वारा उन्हें खींच कर उठाया और ह्रदय से लगा लिया l घर ले जाकर भगवान् ने उनका बड़ा स्वागत-सत्कार किया l श्रद्धा से उन्हें पवित्र और अनेक गुणों से युक्त अन्न का भोजन कराया l इस प्रकार सत्कार हो चुकने पर नन्द राय ने उनके पास आकर पूछा - 'अक्रूरजी ! आपलोग निर्दयी कंस के जीते-जी किस प्रकार अपने दिन काटते हैं l फिर भी आप सुखी हैं, यह अनुमान तो हम कर ही कैसे सकते हैं' ? जब इस प्रकार नंदबाबा ने मधुर वाणी से अक्रूरजी से कुशल-मंगल पूछा और उनका सम्मान किया तब अक्रूरजी के शरीर में रास्ता चलने की जो कुछ थकावट थी, वह सब दूर हो गयी l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)