Saturday, 30 June 2012

अक्रूरजी की ब्रजयात्रा






अब आगे..........

              जिनके चरणकमल की रज का सभी लोकपाल अपने किरीटों के द्वारा सेवन करते हैं,  अक्रूरजी ने गोष्ट में  उनके चरण चिन्हों  के दर्शन किये l  उन चरण चिन्हों के दर्शन करते ही अक्रूरजी के ह्रदय में इतना आह्लाद हुआ कि वे अपने को सँभाल न सके, विह्वल हो गए l  प्रेम के आवेग से उनका रोम-रोम खिल उठा l  नेत्रों में आंसू भर आये और टप-टप  टपकने लगे  l  वे रथ से कूदकर उस धूलि में लोटने लगे और कहने लगे - 'अहो ! यह हमारे प्रभु के चरणों कि रज है' l यहाँ तक अक्रूरजी के चित्त कि जैसी अवस्था रही है, यही जीवों के देह धारण करने का परम लाभ है l  इसलिए जीव मात्र का यही परम कर्त्तव्य कि दम्भ, भय और शोक त्यागकर भगवान् की मूर्ति (प्रतिमा, भक्त आदि) चिन्ह, लीला, स्थान तथा गुणों दर्शन-श्रवण आदि के द्वारा ऐसा ही भाव सम्पादन करें l
               ब्रज में पहुँच कर अक्रूरजी ने श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाइयों को गाय दुहने के स्थान में विराजमान देखा l उनके नेत्र शरत्कालीन कमल के समान खिले हुए थे l उन्होंने अभी किशोर  अवस्था में प्रवेश ही किया था l उनके चरणों में ध्वजा, वज्र , अंकुश और कमल के चिन्ह थे l उनकी एक-एक लीला उदारता और सुन्दर कला से भरी थी l उन्हें देखते ही अक्रूरजी प्रेमावेग से अधीर हो कर रथ से कूद पड़े और भगवान् श्रीकृष्ण तथा बलराम के चरणों के पास साष्टांग लोट गए l भगवान् के दर्शन से उन्हें इतना आह्लाद हुआ कि उनके नेत्र आँसू से भर गए l शरणागत वत्सल भगवान् श्रीकृष्ण उनके मन का भाव जान गए l उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से चक्रांकित हाथों के द्वारा उन्हें खींच कर उठाया और ह्रदय से लगा लिया  l घर ले जाकर भगवान् ने उनका बड़ा स्वागत-सत्कार किया l श्रद्धा से उन्हें पवित्र और अनेक गुणों से युक्त अन्न का भोजन कराया l इस प्रकार सत्कार हो चुकने पर नन्द राय ने उनके पास आकर पूछा - 'अक्रूरजी ! आपलोग निर्दयी कंस के जीते-जी किस प्रकार अपने दिन काटते हैं  l फिर भी आप सुखी हैं, यह अनुमान तो हम कर ही कैसे सकते हैं' ? जब इस प्रकार नंदबाबा ने मधुर वाणी से अक्रूरजी से कुशल-मंगल पूछा और उनका सम्मान किया तब अक्रूरजी के शरीर में रास्ता चलने की जो कुछ थकावट थी, वह सब दूर हो गयी l


श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)          
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Ram