Tuesday, 12 June 2012

रासलीला का आरम्भ






               शरद ऋतु थी l  उसके कारण बेला, चमेली, आदि सुगन्धित पुष्प खिलकर महँक रहे थे l  भगवान् ने गोपियों को जिन रात्रियों का संकेत किया था, वे सब-की-सब पुन्जीभूत होकर एक ही रात्रि के रूप में उल्लासित हो रहीं थीं l भगवान् ने उन्हें देखा, देखकर दिव्य बनाया l गोपियाँ तो चाहती ही थीं l अब भगवान् ने भी अपनी अचिन्त्य महाशक्ति योगमाया के सहारे उन्हें निमित्त बना कर रसमयी रासक्रीडा करने का संकल्प किया l भगवान् के संकल्प करते ही चन्द्रदेव ने प्राची दिशा के मुखमण्डल  पर अपने शीतल किरणरुपी करकमलों से लालिमा की रोली-केशर मल दी l इस प्रकार चन्द्रदेव ने उदय होकर न केवल पूर्वदिशा का, प्रत्युत संसार के समस्त चर-अचर प्राणियों का सन्ताप दूर कर दिया l पूर्णिमा की रात्रि थी और चन्द्रदेव नूतन केशर के समान लाल-लाल हो रहे थे l उनका मुखमण्डल लक्ष्मीजी के समान मालूम हो रहा था l  भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य उज्जवल रस के उद्दीपन की पूरी सामग्री उन्हें और उस वन को देख कर अपनी बाँसुरी पर ब्रज सुंदरियों के मन को हरण करने वाली कामबीज 'क्लीं' की अस्पष्ट एवं मधुर तान छेड़ी l भगवान् का वह वंशीवादन भगवान् के प्रेम को , उनके मिलन की लालसा को अत्यंत उकसानेवाला - बढ़ानेवाला था l यों तो श्याम-सुन्दर ने पहले से ही गोपियों के मन को अपने वश में कर रखा था l अब तो उनके मन की सारी वस्तुएं - भय, संकोच, धैर्य, मर्यादा आदि की वृतियां भी छीन लीं l  वंशीध्वनि सुनते ही उनकी विचित्र गति हो गयी l गोपियाँ भी एक-दूसरे से अपनी चेष्टा को छिपाकर जहाँ वे थे, वहां के लिए चल पड़ीं l
               वंशीध्वनि सुनकर जो गोपियाँ दूध दुह रही थी, वे अत्यंत उत्सुकतावश, दूध दुहना छोड़कर चल पड़ीं l जो भोजन परस रही थीं, जो छोटे-छोटे बच्चों को दूध पिला रही थीं,और जो स्वयं भोजन कर रही थीं वे भोजन करना छोड़कर अपने कृष्णप्यारे के पास चल पड़ीं l पिता और पतियों ने, भाई और जाति-बंधुओं ने उन्हें रोका, उनकी मंगलमयी प्रेम यात्रा में विघ्न डाला l  परन्तु वे इतनी मोहित हो गयी थीं, कि रोकने पर भी न रुकी , न रुक सकीं l


श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०) 
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Ram