Wednesday 13 June 2012

रासलीला का आरम्भ











अब आगे..........
              उस समय कुछ गोपियाँ घरों के भीतर थीं l उन्हें बाहर निकलने का मार्ग ही न मिला l तब उन्होंने अपने नेत्र मूँद लिए और बड़ी तन्मयता से श्रीकृष्ण के सौंदर्य, माधुर्य और लीलाओं का ध्यान करने लगीं l ध्यान में उनके सामने भगवान् श्रीकृष्ण प्रकट हुए l उन्होंने मन-ही-मन बड़े प्रेम से, बड़े आवेग से उनका आलिंगन किया l उस समय उन्हें इतना सुख, इतनी शांति मिली कि उनके सब-के-सब पुण्य के संस्कार एक साथ ही क्षीण हो गए l उन्होंने जिनका आलिंगन किया, चाहे किसी भी भाव से किया हो, वे स्वयं परमात्मा ही तो थे l इसलिए उन्होंने पाप और पुण्यरूप कर्म के परिणाम बने हुए गुणमय शरीर का परित्याग कर दिया l (भगवान् कि लीला में सम्मलित होने  के योग्य दिव्य अप्राकृत शरीर प्राप्त कर लिया ) l  इस शरीर से भोगे जाने वाले कर्मबंधन तो ध्यान के समय ही छिन्न-भिन्न हो चुके थे l
                भगवान् श्रीकृष्ण ने यह जो अपने को तथा अपनी लीला को प्रकट किया है, उसका प्रयोजन केवल इतना ही है कि जीव उसके सहारे अपना परम कल्याण सम्पादन करे l इसलिए भगवान् से केवल सम्बन्ध हो जाना चाहिए l वह सम्बन्ध चाहे जैसा हो - काम का हो, क्रोध का हो या भय का हो, स्नेह नातेदारी या सौहार्द का हो l चाहे जिस भाव से भगवान् में नित्य-निरंतर अपनी वृतियां जोड़ दी जाएँ, वे भगवान् से ही जुड़ती हैं l योगेश्वरों के भी ईश्वर अजन्मा भगवान् के लिए भी यह कोई आश्चर्य कि बात है ?  अरे ! उनके संकल्पमात्र से भोहों के इशारे से सारे जगत का परम कल्याण हो सकता है l भगवान् श्रीकृष्ण ने ब्रज गोपियों को देखकर अपनी विनोदभरी वक्चातुरी से उन्हें मोहित करते हुए कहा - क्यों न हो - भूत, भविष्य, और वर्तमानकाल के जितने वक्ता हैं, उनमें वे ही तो सर्वश्रेष्ठ हैं l
               

श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)                    
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