Friday 29 June 2012

अक्रूरजी की ब्रजयात्रा






अब आगे...........

              जब मैं उन्हें देखूँगा तब सर्वश्रेष्ठ पुरुष बलराम तथा श्रीकृष्ण के चरणों में नमस्कार करने के लिए तुरंत रथ से कूद पडूँगा l उनके चरण पकड़ लूँगा l बड़े-बड़े योगी-यति आत्म साक्षात्कार के लिए मन-ही-मन अपने ह्रदय में उनके चरणों की धारणा करते हैं और मैं तो उन्हें प्रत्यक्ष पा जाऊंगा और लोट जाऊंगा उन पर l मेरे अहोभाग्य ! जब मैं उनके चरणकमलों में गिर जाऊंगा , तब क्या वे अपना करकमल मेरे सिर पर रख देंगे  ?  इन्द्र तथा दैत्यराज बलि ने भगवान् के उन्हीं करकमलों में पूजा की भेंट समर्पित करके तीनों लोकों का प्रभुत्व - इन्द्रपद प्राप्त कर लिया l अवश्य ही मैं उनके चरणों में हाथ जोड़कर विनीतभाव  से खड़ा हो जाऊंगा l वे मुस्कराते हुए दयाभरी स्निग्ध दृष्टि से मेरी ओर देखेंगे l उस समय मेरे जन्म-जन्म के समस्त अशुभ संस्कार उसी क्षण नष्ट हो जायेंगे और मैं नि:शंक हो कर सदा के लिए परमानन्द में मग्न हो जाऊंगा l मैं उनके कुटुम्ब का हूँ और उनका अत्यंत हित चाहता हूँ l उनका आलिंगन प्राप्त होते ही - मेरे कर्ममय बंधन, जिनके कारण मैं अनादिकाल से भटक रहा हूँ , टूट जायेंगे  l तब मेरा जीवन सफल हो जायेगा l भगवान् श्रीकृष्ण ने जिसको अपनाया नहीं, जिसे आदर नहीं दिया - उसके उस जन्म को, जीवन को धिक्कार है l न तो उन्हें कोई प्रिय है और न तो अप्रिय l न तो उनका कोई आत्मीय सुहृद है और न तो शत्रु l उनकी उपेक्षा का पात्र कोई नहीं है l भगवान् श्रीकृष्ण भी , जो उन्हें जिस प्रकार भजता है, उसे उसी रूप में भजते हैं - वे अपने प्रेमी भक्तों से ही पूर्ण प्रेम करते हैं l मैं उनके सामने विनीत भाव से सिर झुकाकर खड़ा हो जाऊंगा और फिर मेरे दोनों हाथ पकड़कर मुझे घर के भीतर ले जायेंगे l वहां सब प्रकार से मेरा सत्कार करेंगे l और मैं उनको आनन्द से निहारता रहूँगा l


श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)
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Ram