अब आगे..........
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा - देवियों ! तुम्हारे पति-पुत्र, माता-पिता, भाई-बन्धु, - कोई भी तुम्हारा तिरस्कार नहीं करेंगे l उनकी तो बात ही क्या, सारा संसार तुम्हारा सम्मान करेगा l अब तुम मेरी हो गयी हो, मुझसे युक्त हो गयी हो l देखो न, ये देवता मेरी बात का अनुमोदन कर रहे हैं l इसलिए तुम जाओ अपना मन मुझमें लगा दो l तुम्हें बहुत शीघ्र मेरी प्राप्ति हो जाएगी l
जब भगवान् ने इस प्रकार कहा, तब ब्राह्मणपत्नियाँ यज्ञशाला में लौट गयीं l उन ब्राह्मणों ने अपनी स्त्रियों में तनिक भी दोषदृष्टि नहीं की l उनके साथ मिल कर अपना यज्ञ पूरा किया l इधर भगवान् श्रीकृष्ण ने ब्राह्मणियों के लाये हुए उस चार प्रकार के अन्न से पहले ग्वालबालों को भोजन कराया और फिर उन्होंने स्वयं भी भोजन किया l इधर जब ब्राह्मणों को यह मालूम हुआ कि श्रीकृष्ण तो स्वयं भगवान् हैं, तब उन्हें बड़ा पछतावा हुआ l वो सोचने लगे कि जगदीश्वर भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम की आज्ञा का उल्लंघन करके हमने बड़ा भारी अपराध किया है l वे कहने लगे - हाय ! हम भगवान् श्रीकृष्ण से विमुख हैं l धिक्कार है ! धिक्कार है !! हमारी विद्या व्यर्थ गयी, हमारे व्रत बुरे सिद्ध हुए l भगवान् की माया बड़े बड़े योगियों को भी मोहित कर लेती है l परन्तु अपने सच्चे स्वार्थ और परमार्थ के विषय में बिलकुल भूले हुए हैं l देखो तो सही - यद्यपि ये स्त्रियाँ हैं, तथापि जगदगुरु भगवान् श्रीकृष्ण में इनका कितना अगाध प्रेम है, अखण्ड अनुराग है ! उसी से इन्होने गृहस्थी की वह बहुत बड़ी फांसी भी काट डाली, जो मृत्य के साथ भी नहीं कटती l अहो, भगवान् की कितनी कृपा है ! भक्तवत्सल प्रभु ने ग्वालबालों को भेजकर उनके वचनों से हमें चेतावनी दी, अपनी याद दिलाई l भगवान् स्वयं पूर्णकाम हैं और कैवल्यमोक्षपर्यन्त जितनी भी कामनाएं होती हैं, उनको पूर्ण करने वाले हैं l वे ही योगेश्वरों के भी ईश्वर भगवान् विष्णु स्वयं श्रीकृष्ण के रूप में यदुवंशियों में अवतीर्ण हुए हैं, यह बात हमने सुन रखी थी ; परन्तु हम इतने मूढ़ हैं कि उन्हें पहचान न सके l वे आदि पुरुष पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण हमारे इस अपराध को क्षमा करें l क्योंकि हमारी बुद्धि उनकी माया से मोहित हो रही है और हम उनके प्रभाव को न जानने वाले अज्ञानी हैं l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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