अब आगे..........
जब इन्द्र को पता लगा कि मेरी पूजा बंद कर दी गयी है, तब वे नंदबाबा आदि गोपों पर बहुत ही क्रोधित हुए l इन्द्र को अपने पद का बड़ा घमण्ड था, वे समझते थे कि मैं हो त्रिलोकी का ईश्वर हूँ l उन्होंने क्रोध से तिलमिलाकर प्रलय करनेवाले मेघों के सान्वर्तक नामक गण को ब्रज पर चढ़ाई करने कि आज्ञा दी और कहा - 'ओह , इन जंगली ग्वालों को इतना घमण्ड ! सचमुच यह धन का ही नशा है l भला देखो तो सही, एक साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर उन्होंने मुझ देवराज का अपमान कर डाला l अब तुम लोग जाकर इनके इस धन के घमण्ड और हेकड़ी को धूल में मिला दो तथा उनके पशुओं का संहार कर डालो l मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे ऐरावत हाथी पर चढ़कर नन्द के ब्रज का नाश करने के लिए महापराकर्मी मरूदगणों के साथ आता हूँ' l
इन्द्र ने इस प्रकार प्रलय के मेघों को आज्ञा दी और उनके बंधन खोल दिए l अब वे बड़े वेग से नंदबाबा के ब्रज पर चढ़ आये और मूसलाधार पानी बरसाकर सारे ब्रज को पीड़ित करने लगे l चारों ओर बिजलियाँ चमकने लगी, बादल आपस में टकराकर कडकने लगे और प्रचण्ड आंधी कि प्रेरणा से वे बड़े-बड़े ओले बरसाने लगे l इस प्रकार जब दल-के-दल बादल बार-बार बरसने लगे, तब ब्रजभूमि का कोना-कोना पानी से भर गया और कहाँ नीचा है, कहाँ ऊँचा - इसका पता चलना कठिन हो गया l सभी ब्रजवासी ग्वाल और ग्वालिने भी ठण्ड के मारे अत्यन्त व्याकुल हो गयीं , तब वे सब-के-सब भगवान् श्रीकृष्ण कि शरण में आये l और बोले - 'प्यारे श्रीकृष्ण ! तुब बड़े भाग्यवान हो अब तो कृष्ण ! केवल तुम्हारे ही भाग्य से हमारी रक्षा होगी l प्रभो ! इस सारे गोकुल के एकमात्र स्वामी, एकमात्र रक्षक तुम्हीं हो l भक्तवत्सल ! इन्द्र के क्रोध से अब तुम्हीं हमारी रक्षा कर सकते हो' l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)
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