भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी ने अक्रूरजी का भलीभांति सम्मान किया l लक्ष्मी जी के आश्रय स्थान भगवान् श्रीकृष्ण के प्रसन्न होने पर ऐसी कौन-सी वास्तु है, जो प्राप्त नहीं हो सकती ? फिर भी भगवान् के परम प्रेमी भक्जन किसी भी वास्तु की कामना नहीं करते l
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा - चाचाजी आपका ह्रदय बड़ा शुद्ध है l स्वागत है, मैं आपकी मंगलकामना करता हूँ l मथुरा के आत्मीय सुहृदय, कुटुम्बी सब कुशल और स्वस्थ हैं न ? हमारा नाममात्र का मामा कंस तो हमारे कुल के लिए एक भंयकर व्याधि है l चाचाजी ! हमारे लिए यह बड़े खेद की बात है कि मेरे ही कारण मेरे निरपराध और सदाचारी माता-पिता को अनेकों प्रकार कि यातनाएं झेलनी पड़ीं - तरह-तरह के कष्ट उठाने पड़े l मैं बहुत दिनों से चाहता था कि आपलोगों में से किसी-न-किसी का दर्शन हो l यह बड़े सौभाग्य की बात है कि आज मेरी यह अभिलाषा पूरी हो गयी, सौम्य स्वभाव चाचाजी ! अब आप कृपा करके यह बतलाईये कि आप का शुभागमन किस निमित्त से हुआ ?
तब अक्रूरजी ने इस प्रकार बतलाया कि 'कंस ने तो सभी यदुवंशियों से घोर वैर ठान रखा है l वह वासुदेवजी को मार डालने का भी उद्यम कर चुका है' l अक्रूरजी ने कंस का सन्देश और जिस उद्धेश्य से उसने स्वयं अक्रूरजी को दूत बनाकर भेजा था और नारदजी ने जिस प्रकार वासुदेवजी के घर श्रीकृष्ण के जन्म लेन का वृतान्त उसको बता दिया था, सो सब कह सुनाया l यह सब सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी हँसने लगे और इसके बाद उन्होंने अपने पिता नन्दजी को कंस की आज्ञा सुना दी l तब नन्दबाबा ने कहा - कल प्रात:काल ही हम सब मथुरा की यात्रा करेंगे और वहां चलकर राजा कंस को गोरस देंगे l वहां एक बहुत बड़ा उत्सव हो रहा है l उसे देखने के लिए सारी प्रजा इकट्ठी हो रही है हम लोग भी उसे देखेंगे' l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)
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