यह सारा जगत - जगत के सब चेतना चेतन प्राणी भगवान् से निकले है और भगवान् ही सर्वर्त्र व्याप्त है | हम सभी जीव भगवान् के सनातन अंश है | भगवान् ही हमारे अभिन्न निमितोपदान कारण है | सब कुछ वही है | भगवन हमारे आत्मा है | भगवान् ही हमारे प्राण है | हमारा जीवन, हमारा प्रेम, हमारा आनंद , हमारे स्वासप्र्स्वाश - सब कुछ भगवान ही है | हम कभी भी, किसी प्रकार भी भगवान् से, भगवान् के प्रेम से, भगवान् के आनंद से, भगवान् की योगषेम करने वाली वृति से अपने को अलग नहीं कर सकते | उसकी व्यापकता से बहार नहीं जा सकते |
भगवान् हमारे अंतरात्मा है - अत भगवान् हम को जितना यथार्थ रूप से जानते है , उतना हम स्वयं अपने को नहीं जानते | वे हमारे मन के अंदर छिपी -से छिपी बात को जानते है | वे परम आत्मीय है | वे स्वाभाव से परम सुहृदय है | उनका सहायक हस्तकमल सदा ही हमारे सर पर है, उनकी कृपा स्नेहमयी दृष्टि के सुधावृस्टी अनवरत हम पर हो रही है | वे नित्य निरंतर हमारे एहिक , पारलोकिक, पारमार्थिक योगषेम का वहां करते है | छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा हमारे सभी काम करने को वे तयार है ; बसर्ते के हम अपनी मूर्खतावश उनके सहायक हाथ को उनके इच्छा अनुसार कार्य करने से रोके नहीं | फिर हमारे सभी कामो में उनका सहायक वरद हस्त काम करेगा -- चाहे हमारा वह काम घर में झाड़ू लगाना हो , चाहे व्यापार करना हो , चाहे सेवा सहायता करना हो और चाहे पारमार्थिक साधन करना हो | भगवान् के लिए छोटे बड़े सभी काम एक से है | शुड्र चिटी के जीवन का सञ्चालन भी वे ही करते है और सृष्टी कर्ता ब्रह्मा का जीवन भी उन्ही से चलता है |
हमे इस बात का अनुभव करना चाहिये के भगवान् सदा हमारे साथ है , वे सर्वशक्तिमान , सर्वात्मा, सर्वलोक महेश्वर , सर्वातीत होते हुए हे हम पर आत्मीयतापूर्ण अनंत प्रेम करते है | जिस क्षण हमारा यह विश्वास हो जायेगा और हम ऐसे अनुभूति करेंगे , उसी क्षण हम समस्त बाधा-विग्न्हो से मुक्त हो कर , सारी बंधन मई परिस्थितियो और संकुचित सीमओं को लाँघ कर नित्य निर्भय , निश्चिंत तथा आनंद और शांति के मूर्त स्वरुप बन जायेंगे | सर्वाद स्मरण रखिये के 'हम भगवान् के ही है और भगवान् हमारे ही है |'
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