भगवान की अमोघकृपा संसार में नर नारीओ के चित स्वाभाविक ही लौकिक पदार्थो की कामना से व्याकुल रहते है और जब तक इन्द्रिय -
मन-
बुधि इस कामना कलुष से कलंकित रहते है,
तब तक भगवान् की उपासना करता हुआ भी मनुष्य अपने उपास्य देवता से स्पष्ट या अस्पस्ट रूप से कामना पूर्ति की ही प्रार्थना करता है |
यही नर नारीओ का स्वाभाव हो गया है |
इसी से वे भगवत भाव के परम सुख से वंचित रहते है |
असल में उपासना का पवित्रतम उद्देश्य ही है -
भगवद्भाव से ह्रदय का सर्वथा और सर्वदा परिपूर्ण रहना |
परन्तु वह ह्रदय यदि नश्वर धन-
जन,
यश-
मान,
विषय-
वैभव,
भोग विलाश आदि की लालसा से व्याकुल रहता है तो उसमे भगवद्भाव नहीं आता और उपासना का उद्देश्य सिद्ध नहीं होता ;
किन्तु सत्संग के प्रभाव से यदि कोई भगवान् के अमोघ कृपा या आश्रय ग्रहण कर लेता है तोह दयामय भगवान् अनुग्रह करके उसके ह्रदय से विषय-
भोग की वासना को हटा कर उसमे अपने चरनाविंद -
सेवन के वासना उत्पन्न कर देते है |
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दुःखमेंभगवतकृपा ,
हनुमानप्रसादपोद्दार ,
गीताप्रेस गोरखपुर,
पुस्तक कोड ५१४
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