महामना मालवीय जी के कुछ भगवनाम -सम्बन्दी संस्मरण
महामना एक बार गोरखपुर पधारे थे और मेरे पास ही दो तीन दिन ठहरे थे | उनके पधारने के दुसरे दिन प्रात: काल में उनके चरणों में बैठा था | वे अकेले ही थे | बड़े स्नेह से बोले -"भैया ! मैं तुम्हे आज एक दुर्लभ तथा बहुमूल्य वस्तु देने चाहता हु | मैंने इसको अपनी माता से वरदान के रूप में प्राप्त किया था | बड़ी अद्भुत वस्तु है | किसी को आज तक नहीं दी , तुमको दे रहा हु | देखने में चीज छोटी से दिखेगी पर है महान 'वरदान रूप' |
इस प्रकार प्राय आधे घंटे तक वे उस वस्तु के मेहता पर बोलते गए | मेरी जिज्ञासा भी बढती गयी | मैंने आतुरता से पूछा - 'बाबू जी ! जल्दी दीजिये , कोई आ जायेंगे |'
तब वे बोले - लगभग चालिश वर्ष पहले की बात है | एक दिन मैं अपनी माता जी के पास गया और बड़ी विनय के साथ उन्स्से यह वरदान माँगा के आप ऐसा वरदान दीजिये , जिससे में कही भी जाऊ सफलता प्राप्त करू |'
"माता जी ने स्नेह से मेरे शीर पर हाथ रखा और कहा - 'बच्चा - ! बड़ी दुर्लभ चीज दे रही हु | तुम जब कही भी जाओ तोह जाने के समय 'नारायण नारायण ' उच्चारण कर लिया करो | तुम सदा सफल होअगे |' मैंने स्राध्हा पूर्वक सर चढ़ा कर माता जी से मन्त्र ले लिया | हनुमानप्रसाद ! मुझे स्मरण है, तबसे अभ तक में जब जब 'नारायण नारायण' उच्चारण करना भुला हु, तब तब असफल हुआ हु |नहीं तोह मेरे जीवन में - चलते समय 'नारायण नारायण ' उच्चारण कर लेने के प्रभाव से कभी असफलता नहीं मिली | आज यह महामंत्र परम दुर्लभ वस्तु मेरी माता की दी हुई महान वस्तु तुम्हे दे रहा हु | तुम इससे लाभ उठाना |" यो कह कर महामना गदगद हो गए |
मैंने उनका वरदान सर चढ़ा कर स्वीकार किया और इससे बड़ा लाभ उठाया | अभ तोह ऐसा हो गया है के घर भर में सभी इसे सीख गए है | जब कभी घर से बहार निकलता हु , तभी बच्चे भी 'नारायण नारायण' उच्चारण करने लगते है | इस प्रकार रोज ही किसी दिन तोह कोई 'नारायण' की और साथ हे पूज्य माता जी के पवित्र स्मृति हो जाती है |
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