भजन क्यों नहीं होता ?
पाप बनने में प्रधान कारण है - पाप में अज्ञानपूर्ण श्रधा या आस्था | मनुष्य की विषयों में आसक्ति तथा कामना होती है और संग दोष से वह पापो को ही उनकी प्राप्ति तथा सरक्षण सवर्धन में हेतु मान लेता है | फिर उतरोतर अधिक से अधिक पापो में ही लगा रहता है | संसार बंधन से छुटने के लिए निस्काम्भाव से तोह वह भगवान् को भजने के कल्पना भी नहीं कर पता, सकाम भाव से भी भगवान् को नहीं भजता, उधर उसकी वृति जाती ही नहीं और वह दिन रात नये नये पापो में उलज्हता हुआ सदा सर्वदा अशांति का अनुभव करता है | तथा परिणाम में घोर नार्को की यातना भोगने को बाध्य होता है |
भगवान् ने स्वयं कहा है 'अर्जुन ! ऐसे मूढ़ (मनुष्य जनम के चरम और परम लक्ष्य ) मुझ (भगवान्) को न पाकर जन्म जन्म में - हजारो लाखो बार असुरी योनी को प्राप्त होते है तदन्तर उससे भी अधम गति में - नरको में जाते है |'(गीता १६\२०)
भवाट्वी में भटकते हुए जीव को अकारण करुण भगवान् कृपा करके मनुष्य शारीर प्रदान करते है , यह देव दुर्लभ शारीर मिलता ही है केवल - भगवत्प्राप्ति का सफल साधन करने के लिए | इशी के लिए इस जीवन में विशेष रूप से 'बुधि' दी जाती है , पर मनुष्य परमात्मा के दुर्लभ देंन - उस बुधि को भोगासक्ति से पापर्जन में लगा कर केवल भगवत्प्राप्ति के साधन से वंचित नहीं होता , वरं बहुत बड़े पापो का बोजह लाधकर दुर्गति को प्राप्त होता है | यह मानव जीवन के सबसे बड़ी और ,महान दुर्भाग्य रूप विफलता है | इस्सी से विस्यनुरागी मनुष्य हो भाग्यहीन बतलाया गया है |
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दुःखमेंभगवतकृपा , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४
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