भजन क्यों नहीं होता ?
सुनहु उमा तह लोग अभागी | हरी तजि होही विषय अनुरागी ||
ते नर नरक रूप जीवत जग , भव - भंजन - पद विमुख अभागी |
निसी बासर रूचि-पाप असुची मन ,खल मति मलिन, निगम पथ त्यागी ||
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तुलसीदास हरिनाम सुधा तजि, सठ हठी पियत विषय-विष मांगी |
सुकर स्वान सृगाल सरिस जन , जनमत जगत जानने दुःख लागी ||
अत मानव जन्म की सफलता इसी में है की मनुष्य अथक प्रयत्न करके भगवान् को या बह्गावत प्रेम कोप्राप्त कर ले | कम से कम भगवत्प्राप्ति के पवित्र मार्ग पर आरूढ़ हो ही जाये | इसके लिए सत्संग करे और सत्संग में भगवान् के स्वरुप, महत्व तथा उनकी प्राप्ति ही मानव जीवन एकमात्र परम उद्देश्य है - यह जानकार उसी में लग जाये | मनुष्य को यह बड़ा भरी मोह हो रहा है के 'सांसारिक भोगो में सुख है ' | यह मोह जब तक नहीं मिटता , तब तक वह कभी किसी देवता का आराधन भी करता है तोह इसके फलस्वरूप वह सांसारिक विषय भोग ही चाहता है | वह छुटना तोह चाहता है दुःख से और प्राप्त करना चाहता है सुख को - परन्तु विषय सुख की भ्रान्ति वस् मोह से वह बार बार प्राप्त करना चाहता है विषय भोगो को ही , जो दुःख के उत्पत्ति स्थान है - दुःख के खेत है |
बिनु सत्संग न हरी कथा तेहि बिनु मोह न भाग |
मोह गए बिनु राम पद होए न दृढ अनुराग ||
सत्संग के बिना भगवत कथा सुननें को नहीं मिलती | भगवत कथा के बिना उपयुक्त मोह का नाश नहीं होता और मोह मिटे बिना भगवत चरणों में दृढ प्रेम नहीं होता |
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दुःखमेंभगवतकृपा , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४
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