Saturday, 11 August 2012

शुभका ग्रहण करो



स्त्रियों के अंग, हाव-भाव, सौंदर्य और चेष्टा आदिका, धनसे प्राप्त होनेवाले गौरव, भोग, आराम और विलासका और मान-सम्मान से मिलनेवाले मिथ्या काल्पनिक सुखोंका कभी स्मरण ना करो | इनके संबंध की बात ही मत सुनो | इनके स्मरण से मनमें काम-विकार होगा, भोग-सुखकी इच्छा उत्पन्न होगी, इर्ष्या-द्वेष और दुखोंका उदय होगा ! कामना की आग ह्रदय में धड़क उठेगी | भगवान् की ओरसे चित्त हट जाएगा | असल बात यह है की जिससे चित्तमें काम, क्रोध, लोभ आदि विकार उत्पन्न हो, ऐसी किसी भी वस्तुका देखना, सुनना, स्पर्श करना अथवा स्मरण करना छोड़ दो |      

शुभको को देखो, शुभको सुनो, शुभका स्पर्श करो, शुभका स्मरण करो | शुभ वही है जो चित्तमें निर्मलता, प्रसाद, शान्ति, सद्भाव, विषय-वैराग्य और प्रभु-भक्ति को उत्पन्न करके चित्त को प्रभु की ओर लगा दे | इसके सिवा जो कुछ भी है, सभी अशुभ है |

बुरी पुस्तकें मत पढ़ो, बुरे नाटक-सिनेमा मत देखो, बुरे स्थान में मत रहो, बुरी बात ना सुनो ना जबान से कहो, बुरा चिंतन ना करो, मतलब यह की बुरेसे सदा सावधानी से बचते रहो |

दुर्गुणों और दुष्कर्मों के भयानक परिणामों को सोचो | नाना प्रकारके शारीरिक रोग, मानसिक पीड़ा, स्मरण-शक्तिका विनाश, उत्साह-भंग, विषाद, शोक, महान निंदा, सुख-सौंदर्य का नाश, दंड, अकाल-मृत्यु, नर्कोंकी प्राप्ति, पशु-पक्षी आदि योनियोंमें जन्म आदि सब दुर्गुण और दुष्कर्मों के ही परीणाम हैं | तुम देखते हो – गरीब कमजोर बैलों को कितना बोझ उठाना पड़ता है, भूख-प्यास सहते हुए डंडों की मार खानी पड़ती है – यह सब मनुष्य जीवन के पापों का ही परिणाम है | याद रखो की पाप करते वक्त जितना ही सुख माना जाता है, उसका फल भुगतते समय उससे भी अति भयानक दुःख भोगना पड़ता है|

साथ ही सद्गुण और सत्कर्म से प्राप्त होनेवाले लाभ पर विचार करो | सद्गुणी और सदाचारी पुरुषों की जीवनियाँ पढ़ो | उनका जीवन कितना सुन्दर और सुखमय होता है | और अन्तमें उन्हें किस प्रकार परम-सुख की प्राप्ति होती है | पढ़ो – ध्रुव, प्रहलाद, भीष्मपीतामाह आदि के जीवनों को |

ये सदा स्मरण रखो की जो लोग दुर्गुणी और दुराचारी हैं, वे सदा दुःख के केन्द्र में ही पड़े हैं | उनका जीवन सदा ही एक दुःखसे दुसरे दुःखमें, एक भयसे दुसरे भयमें  और एक मृत्यु से दुसरे मृत्यु में प्रवेश करता रहता है | सुख, शान्ति और अमरत्व उन्हें कभी प्राप्त होता ही नहीं |

सच्चे सुखी वाही हैं जो सद्गुणी और सदाचारी हैं | जिन्होनें काम, क्रोध, लोभ, मद, मत्सर आदि शत्रुओं को जीत लिया है | ऐसे ही पुरुष सदा सुख, शान्तिमें निवास करते हुए अन्तमें अमरत्व और परम शान्ति को प्राप्त होते हैं |   




भगवान् की पूजा के पुष्प  , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ३५९ 
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram