Monday 13 August 2012

सदा अपने मनको देखते रहो

सदा अपने मनको देखते रहो | अभिमान, काम, क्रोध, लोभ आदि लुटेरे मन रुपी महलमें ऐसे दुबककर छुपे रहते हैं कि साधारण दृष्टि से देखने पर यह पता ही नहीं चलता – ये अंदर मौजूद हैं, परन्तु मौका पाकर ये प्रकट हो जाते हैं, और फिर सद्गुण रुपी धनको ऐसी निर्दयता से लूटते हैं की उम्र-भर का किया-कराया प्राय: सब नष्ट हो जाता है |

किसीकी निंदा मत करो | याद रखो, इससे तुम्हारी जबान गन्दी होगी, तुम्हारी वासना मलिन होगी | जिनकी निंदा करते हो, उससे वैर होने की संभावना रहेगी और चित्तमें कुसंस्कारों के चित्र अंकित होंगे |

याद रखो – संसारमें दोषी लोग ही दूसरे के दोषों को ढूँढ़ते हैं | क्योंकि उन्हें अपने दोषों को ढकने के लिए दूसरों के दोषों की आड़ की आवश्यकता होती है | साधू लोग तो सब जगह साधुता ही खोजते हैं और दिखलाई भी देती है उन्हें साधुता ही | वे हंस की भाँती हमेशा दूसरों के गुण ही ग्रहण करते हैं |

‘पराई चुपड़ी’ देखकर जलो मत | अपनी एक रोटीमेंसे गरीब को एक टुकड़ा देकर खाओ | दुखी को  देना और सुखी के सुख में प्रसन्न रहना उनकी सेवा करना है | सबका हित चाहो, सबका हित करो और हित होता देखकर सुखी होओं |

भक्ति और ज्ञान के नाम पर बुरे कर्म करना भगवान् को ठगने की गन्दी चेष्टा करना है | इन लोगोंसे वे कहीं ज्यादा अच्छे हैं, जो बुरे कर्म करते हैं परन्तु बुरे कहलाते हैं | भक्ति और ज्ञानके नामको जो कलंकित नहीं करते |

बन-ठनकर लोगोंको बाहर से बहुत सुन्दर दिखाई देने लगे, इससे क्या हुआ | जबतक हृदय  कलुषित हैं, जबतक अंतर्यामी परमात्मा के सामने तुम्हारा अंत:कारण सुन्दर होकर नहीं आता, तबतक बाहरी सुन्दरता वैसी ही है, जैसे शराबसे भरा हुआ सोने का कलसा | 


भगवान् की पूजा के पुष्प  , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ३५९
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Ram