परमात्मा का स्वरुप सत्य है | जहां सत्य है वहीँ निर्भयता है और सत्य ही जीवन का लक्ष्य है और सत्य ही साधन है, अतैव सत्य का ही सेवन करो | विचारमें सत्य, व्यवहारमें सत्य, क्रियामें सत्य और वाणीमें सत्य – सर्वत्र सत्य का ही सेवन करो |
यह मत सोचो की सत्य के सेवनसे हानि होगी | सत्य कभी हानिकारक हो ही नहीं सकता | असत्य में सनी हुयी बुद्धि तुम्हें धोकेसे यह समझाना चाहती है कि सत्यसे हानि होगी | सत्य का आचरण करो, इससे बुद्धि भी शुद्ध हो जायेगी |
सत्य वही सुन्दर है जो सबके लिए कल्याणकारी है | और सत्य वस्तुत: कल्याण का विरोधी कभी होता ही नहीं | जिस सत्यमें अकल्याण छिपा रहता है, वह सत्य है ही नहीं |
जिसके मनमें सत्य है उसके मनमें भगवान् का प्रत्यक्ष वास होता है | जिसकी वाणीमें सत्य है, उसकी वाणी दैवी वाणी के समान सत्य होती है | जिसके व्यवहारमें सत्य है, उसका व्यवहार सबको सत्य की तरफ ले जानेवाला होता है |
सत्यका ध्यान करनेसे, सत्यका संकल्प करनेसे, सत्यका मनन करनेसे, सत्यकी खोज करनेसे, सत्यका प्रयोग करनेसे, सत्य वचन बोलनेसे और सत्य का महत्व बार-बार विचारनेसे सत्यमें श्रद्धा होती है | और जिसकी सत्य में श्रद्धा होती है, वही सत्य का सेवन कर सकता है |
सत्य का सेवक मृत्युसे भी नहीं डरता, वह सदा सत्य को दृढ़तापूर्वक पकडे रहता है | सत्यवादी होनेके कारण ही आजतक हरिश्चन्द्र और युधिष्ठिर का लोग गुणगान करते हैं | याद रखना चाहिए की जो सत्यकी सेवा करता है, सत्य उसकी सदा रक्षा करता है |
भगवान् की पूजा के पुष्प , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ३५९
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