पद्धतियों के फेर में ना पड़कर अपनेको भगवान् पर छोड़ दो, रास्तों की छानबीन ना करो और ना किसी रास्ते की ख़ाक ही छानो; अगर तुम अपनेको सर्वथा निराधार मानकर उनपर छोड़ सके तो वे सर्वाधार ही तुम्हारे परमाधार बन जायेंगे | तुम्हारा हाथ पकड़कर, दिव्या प्रकाश की ज्योति दिखलाकर – अधिक क्या, गोद में उठाकर खिलाते-पिलाते और आनन्द देते ले चलेंगे |
पर जब तुम उनकी गोदमें आ गये, तब तुम्हें चलने की और कहीं पहुँचनेकी चिंता कैसी, तुम तो निहाल हो चुके उनकी गोद को पाकर | भगवान् की शरणागति यही है | जो भगवान् के शरण होकर उसका कोई दूसरा फल चाहता या समझता है, वह सब कुछ छोडकर भगवान् के आश्रय में आया ही नहीं |
भगवान् की पूजा के पुष्प , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ३५९
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