Thursday, 9 August 2012

अंधे-बहरे बन जाओ


अंधे बन जाओ – परमात्मा को छोडकर और किसी को देखनेमें – दूसरा कुछ देखो ही मत | ऐसा ना हो सके – जगत दिखे तो कम-से-कम दूसरों के दोषोंको, पराई स्त्रीको, लुभी दृष्टिसे भोगोंको, पराये पापों को और जगत की नित्यता को तो देखो ही मत |

बहरे बन जाओ – भगवान् और भगवान् के सम्बन्धी मधुर चर्चा, कीर्तन, गान आदि को छोडकर और कुछ भी सुननेमें | जो कुछ सुनो – भगवन्नाम और भगवान् के तत्त्व और लीला-चरित्र ही सुनो | ऐसा ना हो सके – और भी कुछ सुनना पड़े तो कम-से-कम इश्वर-निंदा, साधू-निंदा, परनिन्दा, स्त्री-चर्चा, पराये अहित की चर्चा, अपनी प्रशंसा, व्यर्थ बकवाद और चित्त को परमात्माके चिंतन से हटानेवाले शब्द तो सुनो ही मत |

गूंगे बन जाओ – भगवान् और भगवान् के सम्बन्धी बातों को छोडकर और कुछ भी बोलनेमें | जो कुछ बोलो, भगवान् के नाम और गुणों की चर्चा करो | ऐसा ना हो सके, बिना बोले ना रहा जाए तो कम-से-कम कपटपूर्ण, असत्य, दूसरों का अहित करनेवाले, पर-निंदाके, अपनी प्रशंसा के, व्यर्थ बकवाद के, और भगवान् में प्रीती ना उपजाने वाले शब्द तो बोलो ही मत |

लूले-लंगड़े बन जाओ – भगवान् के भगवान् से संबंध रखनेवाले स्थानों को छोडकर और कहीं भी जानेमें – जहां भी जाओ भगवान् के प्रेमके लिए, प्रभु की सेवाके लिए मंदिरों में ही जाओ चाहे उन मंदिरों में मूर्ति हो चाहे वे साधारण घर ही क्यों ना हो | ऐसा ना हो सके – दूसरी जगह जाना पड़े तो कम-से-कम वैश्याशालामें, शराबखानेमें, जुआरियोंमें, कसाइयोंमें, परपीड़कोंमें जहां भगवान् की, संतों की, धर्मकी, सदाचार की निंदा या इनके विरोधमें क्रिया होती हो, ऐसे स्थानोंमें जहां परनिंदा और अपनी प्रशंसा होती हो वहाँ तो जाओ ही मत | 


भगवान् की पूजा के पुष्प  , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ३५९  
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Ram