Thursday, 20 September 2012

भगवान् का विधान






अब आगे.......
       
         जैसे डाक्टर बहुत-से रोगियों को बेहोश करके उनके घावों को छुरे से चीरता है, उनके सड़े-गले मांस और रक्त को निकालता है, आवश्यकता होने पर हड्डियों तथा किसी अंग तक को काट डालता है, उसी प्रकार भगवान् भी करते हैं l  डाक्टर  के उस ऑपरेशन को एक छोटा बालक निर्दयता का ही काम कह सकता है, किन्तु समझदार  यह जानते हैं कि डाक्टर का सारा प्रयत्न रोगी को जीवनदान देने के ही लिए है l  इसी प्रकार जब जगत में सामूहिक संहार कि लीला देखने में आती है, तब साधारण मनुष्य भगवान् को निष्ठुर, निर्दय तथा और भी न जाने क्या-क्या कहने लगते हैं, किन्तु ज्ञानी पुरुष जानते हैं कि भगवान् का प्रत्येक कार्य जगत के कल्याण के लिए ही हो रहा है l  उसमें जो कष्ट या दुःख कि प्राप्ति कुछ काल  के लिए होती है वह हमारे अपने ही कर्मों  का , अपथ्य-सेवन से बढ़ाये हुए रोगों या घावों क ही कटु परिणाम है l  भगवान् तो उससे भी छुड़ाने के लिए ही यत्नशील हैं l
         इतना होने पर भी जो मानव स्वयं असुर बनकर दूसरे नर-नारियों का रक्त बहा रहे हैं उन्हें इसका कठोर दण्ड भोगना पड़ेगा l  जो लोग इस अत्याचार के शिकार हो रहे हैं, उनको तो किसी पूर्व कर्म का भोग मिलता है, परन्तु जो धर्म और ईश्वर को  भुलाकर, विवेक और विचार को खोकर तुच्छ स्वार्थ के लिए या काम, क्रोध, द्वेष, वैर और हिंसावृति  के वश में होकर प्राणियों के जीवन को संकट में डाल रहे हैं  l वे गीता कि वाणी में 'असुर-स्वभाव' वाले हैं l  उन्हें भगवान् का कठोर दण्ड अवश्य मिलता है  l



सुख-शान्ति का मार्ग (३३३)    
         
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Ram