भगवान् में सब कुछ है
आज से हजारों वर्ष पूर्व महाराज ययाति ने भी ऐसा ही अनुभव प्राप्त किया था l वे विषयभोग से विषयतृष्णा का दमन करना चाहते थे l जीवन में यह प्रयोग करके उन्होंने देखा, किन्तु अन्त में उन्हें निराशा ही हाथ लगी l वे इस परिणाम पर पँहुचे कि विषयों का उपभोग विषयेच्छा रुपी अग्नि को प्रज्वलित करने में घी का काम करता है l इस अनुभव के बाद वे उधर से हट गए l शेष जीवन उन्होंने भगवान् की आराधना में बिताया, इससे वे परम कल्याण के भागी हुए l आप को भी मैं यही सलाह दूंगा, भगवान् के प्रति आपने मन में आकर्षण पैदा कीजिये l रूप, रस, गंध, स्पर्श, शब्द - ये सभी विषय अनन्त और दिव्याति दिव्यरूप में भगवान् में हैं l आप-अपने मन से कहिये - वह भगवान् की ओर लगे, उन्हीं का चिन्तन करे l वहां एक ही जगह उसे सब कुछ मिल जायेगा, उसकी सारी कामनाएं पूर्ण हो जाएँगी l आजकल समय देखते हुए तो यही मार्ग निरापद जान पड़ता है l
आप चाहते हैं - वीर्य की ऊधर्वगति हो, आप के लिए मन में ऊधर्वरेता बनने की साध है l किन्तु आप समय पर चूक गए हैं l योग-साधन का सबसे बड़ा सहारा है -ब्रह्मचर्य - वीर्य का संरक्षण l किन्तु उसी पर आपने तुषारपात कर दिया है l पता नहीं, आप की अवस्था अब क्या है और आप ने जीवन का कितना समय कामान्धता में बर्बाद किया है l यह जानने पर ही कोई उपयोगी सलाह दी जा सकती थी l ऊपर जो परामर्श दिया गया है, वह सब के लिए सभी अवस्थाओं में परम मंगलदायक है l भगवान् गीता में कहते हैं - 'पहले का कितना ही दुराचारी क्यों न हो, जो अनन्यभाव से मेरा भजन करता है, वह साधू ही मानने योग्य है, क्योंकि उसे उत्तम निश्चय कर लिया है l ' अब उसके राह पर आने में - धर्मात्मा बनने में देर नहीं है l -
'क्षिप्रं भवति धर्मात्मा ll '
योग-विद्या और कुण्डलिनी-शक्ति को जगाने की विधि मुझे ज्ञात नहीं है, न मैं किसी अनुभवी योगी अथवा प्रामाणिक योग आश्रम का ही पता जानता हूँ l अत: इस विषय में आप को कोई राय नहीं दे सकता l आप संसार में रहकर निवृतिमय जीवन बिताना चाहते हैं तो भगवान् की शरण ग्रहण कीजिये l यही मंगलमय और निष्कंटक मार्ग है l
सुख-शान्ति का मार्ग(३३३),गीता प्रेस, गोरखपुर
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