अब आगे.........
यह अवश्य ही बड़ी मनोहर बात है कि भगवान् में परस्पर-विरोधी गुण-धर्म युगपत रहते हैं, जो भगवान् की भगवत्ता का एक लक्षण माना जाता है और यह कहा जाता है कि जिसमें परस्पर-विरोधी गुण-धर्म एक साथ, एक समय में रहें, वह भगवान् है l जहाँ गर्मी है, वहाँ सर्दी नहीं है; जहाँ दुःख है, वहाँ सुख नहीं है , जहाँ मिलन है, वहाँ अमिलन नहीं है और जहाँ भाव है, वहाँ अभाव नहीं है l इस प्रकार दो विरोधी वस्तु जगत में एक साथ एक समय नहीं रहतीं l यह नियम है l परन्तु भगवान् ऐसे विलक्षण हैं - वे अणु-से-अणु भी हैं और उसी समय वे महान-से-महान भी हैं l
'वे चलते हैं और नहीं भी चलते, वे दूर हैं और पास भी हैं l ' वे एक ही समय निर्गुण भी हैं, उसी समय वे सगुण भी हैं l वे निराकार हैं, उसी समय वे साकार भी हैं l उनमें युगपत-एक साथ परस्पर-विरोधी गुण-धर्म रहते हैं l और जिस प्रकार भगवान् में परस्पर-विरोधी गुण-धर्म एक साथ निवास करते हैं, उसी प्रकार वे परस्पर-विरोधी गुण-धर्म भगवत्प्रेम में , भगवत्प्रेम कि साधना में भी एक साथ रहते हैं l वहाँ प्रेम-साधना में और प्रेमोदय के पश्चात् भी हँसने में रोना और रोने में हँसना चलता है l रोना विरह-विकलता जनित पीड़ा का और हँसना मधुरस्मृति जनित आनन्द का l दोनों साथ-साथ चलते हैं ? यह बिलकुल युक्ति संगत बात है l जिसके लिए वे रोते हैं ; उसकी स्मृति है, स्मृति न हो तो किसके लिए रोना और स्मृति है तो उसके सान्निध्य का आनन्द साथ है l अत: रोना और हँसना - ये दोनों इस रस के साधन में साथ-साथ चलते हैं l वस्तुत: वह रोना भी हँसना ही है l वह रोना भी मधुर है, मधुरतर है l फिर एक बात - ये मिलन और वियोग प्रेम के दो समान स्तर हैं l इन दोनोने में ही प्रेमीजनों की भाषा में, प्रेमीजनों की अनुभूति में समान 'रति' है l तथापि यदि कोई उनसे पूछे कि 'तुम दोनों में से कौन सा लाना चाहते हो, एक ही मिलेगा - संयोग या वियोग ?' यह बड़ा विलक्षण प्रश्न है l हमसे यही प्रश्न किया जाये कि 'तुम दोनों में कौन-सा चाहते हो, तो स्वाभाविक हम यही यही कहेंगे - 'हम मिलन चाहेंगे, संयोग चाहेंगे वियोग कदापि नहीं l '
मानव-जीवन का लक्ष्य[५६]
यह अवश्य ही बड़ी मनोहर बात है कि भगवान् में परस्पर-विरोधी गुण-धर्म युगपत रहते हैं, जो भगवान् की भगवत्ता का एक लक्षण माना जाता है और यह कहा जाता है कि जिसमें परस्पर-विरोधी गुण-धर्म एक साथ, एक समय में रहें, वह भगवान् है l जहाँ गर्मी है, वहाँ सर्दी नहीं है; जहाँ दुःख है, वहाँ सुख नहीं है , जहाँ मिलन है, वहाँ अमिलन नहीं है और जहाँ भाव है, वहाँ अभाव नहीं है l इस प्रकार दो विरोधी वस्तु जगत में एक साथ एक समय नहीं रहतीं l यह नियम है l परन्तु भगवान् ऐसे विलक्षण हैं - वे अणु-से-अणु भी हैं और उसी समय वे महान-से-महान भी हैं l
'वे चलते हैं और नहीं भी चलते, वे दूर हैं और पास भी हैं l ' वे एक ही समय निर्गुण भी हैं, उसी समय वे सगुण भी हैं l वे निराकार हैं, उसी समय वे साकार भी हैं l उनमें युगपत-एक साथ परस्पर-विरोधी गुण-धर्म रहते हैं l और जिस प्रकार भगवान् में परस्पर-विरोधी गुण-धर्म एक साथ निवास करते हैं, उसी प्रकार वे परस्पर-विरोधी गुण-धर्म भगवत्प्रेम में , भगवत्प्रेम कि साधना में भी एक साथ रहते हैं l वहाँ प्रेम-साधना में और प्रेमोदय के पश्चात् भी हँसने में रोना और रोने में हँसना चलता है l रोना विरह-विकलता जनित पीड़ा का और हँसना मधुरस्मृति जनित आनन्द का l दोनों साथ-साथ चलते हैं ? यह बिलकुल युक्ति संगत बात है l जिसके लिए वे रोते हैं ; उसकी स्मृति है, स्मृति न हो तो किसके लिए रोना और स्मृति है तो उसके सान्निध्य का आनन्द साथ है l अत: रोना और हँसना - ये दोनों इस रस के साधन में साथ-साथ चलते हैं l वस्तुत: वह रोना भी हँसना ही है l वह रोना भी मधुर है, मधुरतर है l फिर एक बात - ये मिलन और वियोग प्रेम के दो समान स्तर हैं l इन दोनोने में ही प्रेमीजनों की भाषा में, प्रेमीजनों की अनुभूति में समान 'रति' है l तथापि यदि कोई उनसे पूछे कि 'तुम दोनों में से कौन सा लाना चाहते हो, एक ही मिलेगा - संयोग या वियोग ?' यह बड़ा विलक्षण प्रश्न है l हमसे यही प्रश्न किया जाये कि 'तुम दोनों में कौन-सा चाहते हो, तो स्वाभाविक हम यही यही कहेंगे - 'हम मिलन चाहेंगे, संयोग चाहेंगे वियोग कदापि नहीं l '
मानव-जीवन का लक्ष्य[५६]
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