नवरात्री के पर्व ही हार्दिक शुभकामनाएं
गत से आगे .......
जैसे सूर्य और रात्रि दोनों एक साथ एक जगह नहीं रह सकते, इसी प्रकार से भोग और भगवान् भी एक साथ नहीं रह सकते । भोग या तो भगवान्
के दास होकर रहेंगे और नहीं तो नहीं रहेंगे । अगर भोग
भगवान् के समकक्ष होकर रहते हैं तो वहाँ भगवान् छिप जायेंगे । हमारे हृदयों
में भगवान् छिपे हुए हैं; क्योंकि जिस विश्वाससे भगवान् प्रकट होते हैं, वह
विश्वास हम में नहीं है । भगवान् को तो आवश्यकता है नहीं कि उसको कोई माने, तब वे
कोई चमत्कार दिखलायें । हम यदि विश्वास नहीं करते तो हम भगवत्कृपा से वंचित रह
जाते हैं ।
बिनु बिस्वास
भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु ।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ
जीव न लह बिश्राम ।।
(रा० च० मा० ७|९० क )
राम की कृपा के बिना तो
जीव को शान्ति मिलती नहीं है और सबपर नित्य बरसने वाली रामकृपा का अनुभव बिना
विश्वास के होता नहीं है । इसलिए भगवान् पर विश्वास हो और भोगों से निराशा हो ।
‘आशा ही परमं दु:खं नैराश्यं परमं सुखम्
।’
भगवान् कहते हैं – ‘ निराशीर्निर्ममो
भूत्वा ’ (गीता ३।३०) आशा छोड़कर , ममता छोड़कर युद्ध करो । भागवत
में आया है कि जगत की आशा ही परम दु:खरूप है और जगत से
निराशा ही परम सुख है । परन्तु यह जगत की आशा,
विषयोंकी आशा तबतक हमारे मनसे दूर नहीं होगी जबतक हमें भगवां पर विश्वास नहीं होगा
।
शेष आगे के ब्लॉग में
कल्याण
संख्या – ९ ,२०१२
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श्री
हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी
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