अब आगे ....
जितने भी संत-महात्माओं के चरित्र
हैं, संतों की वाणी है , वह इसी बात को सिद्ध करने के लिए हैं , जिस से हमारा भगवान्
पर विश्वास हो जाये । कोई स्थिति अगर भगवान् के विश्वास
को हटा देती है तो फिर विश्वास कहाँ ? वह विश्वास तो परिस्थिति पर है ।
अमुक परिस्थिति हो तो भगवान् की कृपा और अमुक परिस्थिति न हो, तब भगवान् की कृपा
नहीं । यहाँ तो कृपा निर्भर कर रही है परिस्थिति पर । भगवान्
की कृपा अखण्ड है, अपार है, अनन्त है, अचल है,सर्वदा है और सर्वथा है –
यहाँ बात तो हमारे द्वारा नहीं मानी गयी , तब फिर हमारी दृष्टि में परस्थिति के
अधीन ही भगवान् के कृपा की मान्यता हुई । अगर हमारे मनके
अनुकूल परिस्थिति है तो भगवान् की कृपा और मनके प्रतिकूल परस्थिति हुई तो भगवान्
की कृपा नहीं हुई । कहते हैं लोग कि उसपर तो भगवान् की बड़ी कृपा है और हम
पर भगवान् का कोप हो रहा है । न मालूम क्या बात है कि भगवान् की कृपा तो हम पर
होती ही नहीं है ।होती नहीं का क्या अर्थ है ? कि हमारे
मन के अनुकूल परस्थिति आती नहीं है । वह स्थिति आ जाय, तब भगवान् की कृपा
और न आये तो कृपा नहीं । हमने परिस्थिति को कृपा मान लिया है ।
शेष
अगले ब्लॉग में .....
कल्याण
संख्या – ९ ,२०१२
श्री
हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी
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