Saturday 20 October 2012

सुखी होनेका सर्वोत्तम उपाय



जब तुम्हारा साधन नहीं होता, तुम्हारा भजन नहीं होता तब विपत्ति आ गयी । नहीं तो विपत्ति है ही नहीं । इसीलिए साधक लोग विषयी लोगों के उलटे मतवाले होते हैं । विषयी जहाँ मान चाहते हैं , वहाँ साधक मान से डरते हैं । विषयी जहाँ स्तुति चाहते हैं , वहाँ साधक स्तुति से डरते हैं , निंदा को अपनाते हैं । विषयी जहाँ भोग-सुख चाहते हैं साधक वहाँ भोग-सुख से डरते हैं । कहीं इनमे मन फंस न जाय । कहीं भोगों में साधक को रहना पड़ता है तो बड़े चौकन्ने रहते हैं कि कहीं फिसल न जायं । जितना भी यह भोग क्षेत्र है , सब फिसलने की जगह है । बड़ी सावधानी की जगह है । जरा-से-में भगवान की विस्मृति हो जायेगी और भोग आकार सवार हो जायेंगे । अभी दुःख क्यों है ? भोगियों को देखकर दुःख है । सब एक से हो जायं तो दुःख रहे ही नहीं भोगों की महत्ता  हमारे मन में है कि अमुक के पास भोग है और हमारे पास नहीं है । उसके पास इतना बड़ा मकान है और मेरे पास रहने की झोपडी नहीं है , इसलिये दुखी है । अमुक का इतना सम्मान है और हमारा नहीं है । अमुक की इतनी प्रशंसा होती है हमारी निंदा होती है । लोग क्या कहेंगे ? अरे, अपने कान बंद कर लो । लोगों को मत देखो लोग अपना कह सुन-करके चुप हो जायेंगे ।निंदा उसकी होती है जो निंदा को निंदा मानता है । प्रशंसा उसकी होती है जो प्रशंसा मानता है । साधक लोगों की उक्तियों को सुनेगा नहीं और सुनेगा तो मन ही मन हँसेगा कि देखो , बेचारे कितने भोले हैं जो जगत के पदार्थों में सुख दुःख की कल्पना करते हैं । उसको सुख दुःख नहीं होगा । संसार की निंदा-स्तुति , मान-अपमान ये आने जाने वाले हैं ।यही तो मोह है कि दुखों की उत्पत्ति के स्थान हैं भोग और उनके लिए हम रोयें । वे मिलें तब हम उनके लिए सुखी होवें । जहर पीकर अमीर होना चाहता है । तुलसीदास जी कहते हैं कि विषयरुपी जहर को माँग-माँगकर पीता है । तब भगवान हँसते हैं । यह दुःख को लेकर सुखी होना चाहता है । जो भोग दुःखयोनि हैं, वे सुख देंगे कहाँसे ! भोगों में आस्था , भोगों में ममता , भोगों के लिए चेष्टा , भोगों का संचय , भोगों की प्राप्ति – ये सब दुःख पैदा करने  वाले हैं ; क्योंकि यह भोग जगत है दुःखरूप । इसमें जो सुख है, वह केवल भगवान हैं । अगर जगत मे भगवान को देखें और भगवान् को पकड़ लें और भगवान् के साथ मनको जोड़ ले , तब तो यहाँ दुःख है नहीं ।जीवन में सुख आएगा दुःख लेकर । जगत भयानक दुःख रूप है – यह समझकर भोग पर आस्था मिटी कि भगवान् में विश्वास हुआ – ऐसा होने पर जगत भगवान् कि लीला होने के कारण से दुखरूप नहीं रहेगा । भगवान् कभी सुख का रूप धरकर आ गया और कभी दुःख के रूप में आ गया । कैसा लीलामय है । यह कैसी – कैसी लीलाएँ करता है ! यह लीला देखो और मौज में रहो । फिर ये दुःख नहीं रहेंगे । ये सब भगवान् की  लीलाएँ रहेंगी । 

   कल्याण संख्या – ९ ,२०१२ 
                                                                                                                            
        श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी

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