Tuesday 23 October 2012

रास-रहस्य[त्याग की पराकाष्ठा]





अब आगे.....

        भला, शरद ऋतु में मल्लिका कहाँ से प्रफुल्लित हुई ? परन्तु इसके विचित्र भाव हैं और विचित्र अर्थ हैं l  यह अनुभव की वस्तु है, कुछ कहा नहीं जा सकता l किन्तु इतनी बात तो जान लेनी चाहिए कि यह जो कुछ है - सब भगवान् में है और भगवान् का है l  जड़ की सत्ता जीव की दृष्टि में होती है l  अज्ञान युक्त हमारी आँखों में है - उसकी सत्ता l भगवान् की दृष्टि में जड़ की सत्ता ही नहीं है l  देह और देही का जो भेदभाव है, वह प्रकृति के राज्य में है, जड़ राज्य में है l अप्राकृतिक लोक में, जहाँ प्रकृति भी चिन्मय है, वहाँ सब कुछ चिन्मय है l  वहाँ अचित की कहीं-कहीं जो प्रतीति होती है - वह केवल चिद्विलास अथवा भगवान् की लीला की सिद्धि के लिए होती है  l वस्तुत: वहाँ अधिक कुछ है ही नहीं l  इसलिए होता यह है कि जीव होने के कारण हमारा मस्तिष्क, क्योंकि जड़-राज्य में है, इस लिए जड़-राज्य में हम प्राकृतिक वस्तुओं को जड़ रूप में ही देखते हैं l  इसीलिए कभी-कभी हम अप्राकृतिक वस्तु का भी विचार करते हैं, जैसे - भगवान् का दिव्य लीला-प्रसंग का, भगवान् की रासलीला इत्यादि का, जो सर्वथा अप्राकृतिक चिन्मय वस्तु हैं, तो हमारी यह बुद्धि जड़ में प्रविष्ट रहने के कारण वहाँ भी जड़ को ही देखती है l  इस प्रकार अपनी जड़-राज्य की धारणाओं को, कल्पनाओं को, क्रियाओं को लेकर हम उसीका दिव्य राज्य में भी आरोप कर लेते हैं l अपनी सड़ी-गली-गन्दी विषय-विष-कर्दम भरी आँखों से हम वही सड़ी-गली-गन्दी चीज़ों की, हाड़-मांस-रक्त के शरीर की - जिस में विष्ठा-मूत्र-श्लेष्म भरा है कल्पना करते हैं - इसी को देखते हैं l  चिन्मय राज्य में हम प्रवेश ही नहीं कर पाते और इसलिए दिव्य-रास में भी हम लोग इन जड़ स्त्री-पुरुषों की और उनके मिलन की ही कल्पना करते हैं l  इनटू यह बात सर्वदा ध्यान में रखने की है कि भगवान् का यह रास परम उज्जवल, दिव्य रस का प्रकाश है l जड़-जगत की बात तो दूर रही, हम यहाँ तक कह दें तो अत्युक्ति नहीं होगी कि ज्ञान या विज्ञानं रूप जगत में भी यह प्रकट नहीं होता l इतना ही नहीं, जो साक्षात् चिन्मय तत्व है, उस परम दिव्य, चिन्मय तत्व में भी इस दिव्य रस का लेशमात्र नहीं देखा जाता l

मानव-जीवन का लक्ष्य[५६]                            
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Ram