Sunday 28 October 2012

रस[प्रेम]-साधन की विलक्षणता



         स्वरूपत: तत्व एक होने पर भी रसरूप भगवान् और रस की साधना-प्रेम साधना कुछ विलक्षण होती है l रस-साधना में एक विलक्षणता यह है की उसमें आदि से ही केवल माधुर्य-ही-माधुर्य है l जगत में दुःख-दोष देखकर जगत का परित्याग करना, भोगों में विपत्ति जानकर भोगों को छोड़ना, संसार को असार समझकर इससे मन को हटाना- वे सभी अच्छी बातें हैं, बड़े सुन्दर साधन हैं, होने भी चाहिए l  पर रस की साधना में कहीं पर खारापन नहीं रहता l इसलिए किसी वस्तु को वस्तु के नाते त्याग करने की इसमें आवश्यकता नहीं रहती l  प्रेम की - रस ही रस है l अत: भगवान् में अनुराग को लेकर रस की साधना का प्रारंभ होता है l एकमात्र भगवान् में अनन्य राग, तो अन्यान्य वस्तुओं में राग का स्वाभाविक ही अभाव हो जाता है l  इसलिए किसी वस्तु का न तो स्वरूपत: त्याग करने की आवश्यकता होती और न किसी वस्तु में दोष-दुःख देखकर उसे त्य्हाग करने की प्रवृति होती है l  उन वस्तुओं में से राग निकल जाने के कारण कहीं द्वेष भी नहीं रहता l  ये राग-द्वेष द्वन्द्व हैंब l  जहाँ राग है, वहां द्वेष है l  जहाँ द्वेष है, वहां राग भी है l  द्वन्द्व की वस्तु अकेली नहीं होती l  इसीलिए उसका नाम द्वन्द्व है l  सो या तो ज्ञानी विचार के द्वारा द्वन्द्वातीत  होते हैं या ये रसिक लोग -प्रेमीजन द्वन्द्वों से अपने लिए अपना कोई सम्पर्क नहीं रखकर उन द्वन्द्वों के द्वारा ये अपने प्रियतम भगवान् को सुख पहुँचाते  हैं और प्रियतम को सुख पहुँचाने के जो भी साधन हैं, उनमें से कोई-सा साधन भी त्याज्य नहीं, कोई-सी वस्तु भी हेय नहीं l एवं उन वस्तुओं में कहीं आसक्ति है नहीं कि जो मन को खींच सके l  इसलिए रस की साधना में कहीं पर कडवापन नहीं है l  उसका आरंभ ही होता है माधुर्य को लेकर, भगवान् में राग को लेकर राग बड़ा मीठा होता है l राग का स्वाभाव ही है मधुरता l जिसमें हमारा राग हो जाय, जिसमें हमारा प्रेम हो जाय, उसका प्रत्येक पदार्थ, उससे सम्बंधित प्रत्येक वस्तु सुखप्रदायिनी  हो जाती है, सुखमयी बन जाती है l  यह राग का - प्रेम का स्वभाव है l   वह राग जहाँ पर भी है, जिस किसी वस्तु में है, वही वस्तु सुखकर हो जाती है और यह रस साधना  शुरू होती है राग से ही l  इस साधना की बड़ी सुन्दर ये सब चीज़ें हैं समझने की , सोचने की, पढने की और वास्तव में साधना करने की l

मानव-जीवन का लक्ष्य[५६]                        l
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Ram