महात्मा श्री चरणदास जी ने एक जगह लिखा है - एक नगर था l उस नगर में ऐसी प्रथा थी कि एक वर्ष पूरा हो जाने पर उस नगर के राजा को गद्दी से उतार दिया जाता था और नए राजा को बैठाया जाता था l पुराने राजा को नाव में बैठाकर नदी पार भीषण वन में अकेला छोड़ दिया जाता था l प्रतिवर्ष इस प्रकार होता था l यों कई मनुष्य राजा बने और वर्ष पूरा हो जाने पर जंगल में जाकर दुःख भोगने लगे l एक वर्ष तक राज्य-सुख-भोग में वे इतने आसक्त रहते थे कि उन्हें एक वर्ष बाद क्या स्थिति होगी इसकी याद ही नहीं रहती थी l
एक बार इसी नियमानुसार एक मनुष्य को राजगद्दी मिली l वह बहुत बुद्धिमान था l उसने गद्दी पर बैठते ही पूछा - 'यह कितने दिनों के लिए है ?' कर्मचारियों ने बताया - 'एक वर्ष के लिए है' l उसने पूछा - 'फिर क्या होगा ?' उसको बताया गया कि 'एक वर्ष पूरा होने के बाद आपसे यह राज्यसत्ता छीन ली जाएगी l आपकी सारी सम्पत्ति, यहाँ तक कि वस्त्र भी उतार लिए जायेंगे l केवल एक धोती पहने आपको नदी के उस पार बीहड़ वन में अकेले जाना पड़ेगा l नाववाले आपको वहाँ उतार कर लौट आयेंगे l यही यहाँ की सनातन प्रथा है l ' यह सुनकर उसने सोचा कि 'एक वर्ष तो बहुत है l इतने समय में तो सब कुछ किया जा सकता है l ' उसने राज्य का भार हाथ में लिया और सावधानी तथा ईमानदारी से न्यायपूर्वक वह प्रजापालन करने लगा , पार एक वर्ष की अवधि को नहीं भूला l उसने अपने व्यक्तिगत सुखों की कुछ भी परवा नहीं की l नाच-मुजरे, अभिनन्दन-सम्मान, मौज-शौक, खेल-तमाशे आदि व्यर्थ के कार्य सब बंद कर दिए और यह आदेश दे दिया कि 'नदीपार का जंगल काटकर वहाँ बस्ती बसायी जाये l नगर बने l प्रचुर मात्रा में साधन-सामग्री तथा काम करनेवाले योग्य पुरुष वहाँ भेज दिए जाएँ l वर्ष पूरा होने के पहले-पहले वहाँ सब व्यवस्था ठीक हो जाये l '
इस प्रकार आदेश देकर वह अपने काम सँभालने लगा l राज्य-सुख भोगने में उसने अपना समय नष्ट नहीं किया l किन्तु एक वर्ष बाद उसे दुःख भोगना न पड़े और सब सुख-सुविधा बनी रहे, इसके लिए वह प्रयत्न करता रहा l एक वर्ष की अवधि में वहाँ जंगल की जगह एक छोटा-सा सुन्दर देश बस गया l सब सामग्रियां वहाँ सुलभ हो गयीं l एक वर्ष पूरा हो जाने के बाद उसको गद्दी पर से उतार दिया गया l वह तो हंस रहा था l उसको किसी बात की चिन्ता न थी l जब नदीपार जाने लगे तो नाविकों ने पूछा -'और वर्ष तो जो लोग जाते थे, सभी रोते थे; आप कैसे हंस रहे हैं ?' उसने कहा - 'भाई ! वे लोग एक वर्ष तक राज्य-सुख भोगते रहे, मौज-मजे करते रहे, विषयानन्द में निमग्न रहे l उन्होंने भविष्य का विचार नहीं किया l
यह एक दृष्टान्त है l हमको यह देव-दुर्लभ मानव-शरीर एक नियत समय के लिए ही मिला है l नियत समय पूरा होने पर यह हमसे छीन लिया जायेगा और इसके सारे साज-सामान भी यहीं छूट जायेंगे l जब तक जीवन का यह नियत काल पूरा न हो जाये, तभी तक मानव-जीवन का पूरा लाभ उठा लेना चाहिए l
मानव-जीवन का लक्ष्य(५६)
0 comments :
Post a Comment