Monday, 8 October 2012

मनुष्य-जीवन का परम कर्त्तव्य






अब आगे........

    भगवान् और भोग में बड़ा भारी अन्तर है l उनके स्वरुप साधन और फल के बारे में आपको सात बातें बताता हूँ -
१- भगवान् की प्राप्ति  इच्छा से होती है l इसमें कर्म की अपेक्षा नहीं, अत: यह सहज है l
    भोगों की प्राप्ति में कर्म की अपेक्षा है l प्रारब्ध कर्म के बिना चाहे जितनी प्रबल इच्छा की जाय, भोग नहीं मिलते l
२- भगवान् एक बार प्राप्त हो जाने पर कभी बिछुड़ते नहीं l
     भोग बिना बिछुड़े नहीं रहते l उनका वियोग अवश्यम्भावी है, चाहे भोगों को छोड़कर हम मर जाएँ l
३- भगवान् की प्राप्ति जब होती है, पूरी ही होती है; क्योंकि भगवान् नित्यपूर्ण हैं l
     भोगों की प्राप्ति सदा अधूरी होती है; क्योंकि भोग कभी पूर्ण हैं ही नहीं l
४- भगवान् को प्राप्त करने की इच्छा होते ही पापों का नाश होने लगता है l
     भोगों को प्राप्त करने की इच्छा होते ही पाप होने लगते हैं l
५- भगवान् को प्राप्त करने की साधना में ही शान्ति मिलती है l
     भोगों को प्राप्त करने की साधना में अशान्ति बढ़ जाती है
६- भगवान् का स्मरण करते हुए मरनेवाला सुख-शान्तिपूर्वक मरता है l
    भोगों में मन रखते हुए मरनेवाला अशान्ति और दुःख पूर्वक मरता है l
७- भगवान् को स्मरण करके मरनेवाला निश्चय ही भगवान् को प्राप्त होता है l
     भोगों में मन रखकर मरनेवाला निश्चय ही नरकों में जाता है l

मानव-जीवन का लक्ष्य (५६)        
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Ram