शास्त्रो का अनुगमन करनेवाली शुद्ध बुद्धि से अपने सम्बंध
में सदा सर्वदा विचार करना चाहिये | विचार से तीक्ष्ण होकर बुद्धि परमात्मा का
अनुभव करती है | इस संसार रुपी दीर्घ रोग का सबसे श्रेष्ठ औषध विचार ही है | विचार
से विपतियो का मूल अज्ञान ही नष्ट हो जाता है| यह संसार मृत्यु, संकट और भ्रम से
भरपूर है, इसपर विजय प्राप्त करने का उपाय एकमात्र विचार है| बुरे को छोड़कर,
अच्छे को ग्रहण, पाप को छोड़ कर पुण्य का
अनुष्ठान विचार के द्वारा ही होता है| विचार के द्वारा ही बल, बुद्धि, सामर्थ्य,
स्फूर्ति और प्रयत्न सफल होते है| राज्य, सम्पति और मोक्ष भी विचार से प्राप्त
होता है | विचारवान पुरुष विपत्ति में घबराते नहीं,सम्पति में फूल नहीं उठाते |
विचारहीन के लिये सम्पति भी विपत्ति बन जाती है | संसार के सारे दुःख अविवेक के
कारण है | विवेक धधकती हुई अंतर्ज्वाला को भी शीतल बना देता है | विचार ही दिव्य
दृष्टि है, इसी से परमात्मा का साक्षात्कार और परमानन्द की अनुभूति होती है | यह
संसार क्या है? मैं कौन हूँ? इससे मेरा क्या सम्बन्ध है? यह विचार करते ही संसार
से सम्बन्ध छुटकर परमात्मा का साक्षात्कार होने लगता है | इसलिये शास्त्रानुगामिनी
शान्त, शुद्ध, बुधि, से विचार करते रहना चाहिए | (योगवासिष्ठ)
नारायण नारायण
नारायण
भगवच्चर्चा,
हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस गोरखपुर,
कोड ८२०, पेज २८९
हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस गोरखपुर,
कोड ८२०, पेज २८९
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