साधना की व्यक्तिगत बातें सबके सामने प्रकट करने की नहीं हुआ करतीं, तथापि यह सत्य भी है कि अपने में अपनी दृष्टि से मुझे अनेक-अनेक दुर्बलताएँ प्रतीत होती हैं l साधना और भगवत्प्रेम का जो स्वरूप कल्पना में आता है, वह तो कहने में ही नहीं आता और जिसको लोगों के सामने कहा जाता है, उसके अनुसार भी देखने पर अपने में बड़ी त्रुटियाँ प्रतीत होती हैं; पर साथ ही यह अवश्य अनुभव होता है कि भगवान् की अहैतुकी कृपा किसी की साधना को नहीं देखती l वह तो जो उस पर विश्वास अवश्य है और मैं यह अनुभव भी करता हूँ कि भगवान् की अहैतुकी कृपा मेरे ऊपर निरन्तर बरस रही है और अगर मेरे में किसी को कोई अच्छापन दिखाई देता है तो वह उस भगवत्कृपा की ही कृपा का फल है l
सम्मान की चाह मनुष्य में बहुत दूर तक बनी रहती है l मनुष्य भगवान् के नाम पर अपने व्यकतित्व का प्रचार और अहम् की पूजा करवाने लगता है, यह उसकी एक कमजोरी है l आपने मेरे सम्बन्ध में पूछा, सो मुझे यही कहना चाहिए और यही लगता भी है कि इस कमजोरी से मैं बचा नहीं हूँ l आपके कथनानुसार -पुस्तकों पर मेरा नाम छपता है, 'कल्याण' में नाम छपता है, संस्थाओं के साथ नाम जुदा रहता है - इन सब में मेरे मन में यश प्राप्त करने की कामना न हो - यह कौन कह सकता है ? आप ऐसा नहीं मानते - यह आपकी गुण दृष्टि है l वस्तुतः अन्तर्यामी भगवान् ही सब जानते है l मैं तो अपने सामने भी अपनी प्रशंसा सुनता हूँ और उद्विग्न होकर कोई घोर प्रतिकार नहीं करता- यह भी कमजोरी ही है l पर यह सब होते हुए भी आप तो मुझे बहुत ऊँचा मानते हैं; आप की इस मान्यता के लिए मैं क्या कहूँ ? पर इतना तो मैं भी मानता हूँ कि भगवान् की कृपा का बल मेरे साथ है और वह मेरे सारे बाधा-विघ्नों को निरन्तर हटाता रहता है और मैं अपने लक्ष्य की ओर सतत अग्रसर हो रहा हूँ l मेरा मेरा मार्ग क्या है, कैसे अग्रसर हो रहा हूँ, उसमें क्या-क्या कठिनाइयाँ और सुविधाएँ हैं - ये सब चीज़ें बताने की नहीं होतीं l
सुख-शान्ति का मार्ग [333]
सम्मान की चाह मनुष्य में बहुत दूर तक बनी रहती है l मनुष्य भगवान् के नाम पर अपने व्यकतित्व का प्रचार और अहम् की पूजा करवाने लगता है, यह उसकी एक कमजोरी है l आपने मेरे सम्बन्ध में पूछा, सो मुझे यही कहना चाहिए और यही लगता भी है कि इस कमजोरी से मैं बचा नहीं हूँ l आपके कथनानुसार -पुस्तकों पर मेरा नाम छपता है, 'कल्याण' में नाम छपता है, संस्थाओं के साथ नाम जुदा रहता है - इन सब में मेरे मन में यश प्राप्त करने की कामना न हो - यह कौन कह सकता है ? आप ऐसा नहीं मानते - यह आपकी गुण दृष्टि है l वस्तुतः अन्तर्यामी भगवान् ही सब जानते है l मैं तो अपने सामने भी अपनी प्रशंसा सुनता हूँ और उद्विग्न होकर कोई घोर प्रतिकार नहीं करता- यह भी कमजोरी ही है l पर यह सब होते हुए भी आप तो मुझे बहुत ऊँचा मानते हैं; आप की इस मान्यता के लिए मैं क्या कहूँ ? पर इतना तो मैं भी मानता हूँ कि भगवान् की कृपा का बल मेरे साथ है और वह मेरे सारे बाधा-विघ्नों को निरन्तर हटाता रहता है और मैं अपने लक्ष्य की ओर सतत अग्रसर हो रहा हूँ l मेरा मेरा मार्ग क्या है, कैसे अग्रसर हो रहा हूँ, उसमें क्या-क्या कठिनाइयाँ और सुविधाएँ हैं - ये सब चीज़ें बताने की नहीं होतीं l
सुख-शान्ति का मार्ग [333]
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