भगवान् की त्रिगुणात्मक सृष्टि में कोई भी ऐसा प्राणी-पदार्थ नहीं है, जिसमें केवल 'तमोगुण' ही हो, 'सत्वगुण' हो ही नहीं, दोष-ही-दोष हों,गुण हो ही नहीं l सम्भव है - तमोगुण बढ़ा हुआ हो - सत्व गुण दबा हुआ हो, पर चेष्टा करने पर तमोगुण दबकर सत्वगुण बढ़ सकता है l अतएव प्रत्येक हितैषी का यह कर्तव्य है कि वह अपने व्यवहार, बर्ताव तथा आचरण से - [केवल उपदेश से नहीं, डांट-डपटकर नहीं, बहिष्कार और असहयोग से नहीं] शुद्ध स्नेह से, मधुर भाषण तथा स्नेहपूर्ण कर्मों से, हितपूर्ण सद्व्यवहार से अपने उस सम्बन्धों के तमोगुण को दबाये और सत्वगुण को बढ़ाये l आप किसी को दोषी साबित करके , उसके दोषों की घोषणा करके उस दोष को उसके पल्ले बाँध देते हैं l और उसके पतन में सहायता ही नहीं करते , वरं धक्का देकर उसे पतन के गर्त में गिरा देते हैं l आप की इस चेष्टा से वह पहले न भी रहा हो तो पीछे वैसा दोषी बन जाता है l
जैसे किसी साधारण रोगी को डाक्टर-वैद्य तथा देखनेवाले यह कहने लगे कि 'तुम्हारा रोग असाध्य है, तुम अच्छे हो ही नहीं सकते ; करना है सो कर लो पता नहीं कब दम टूट जाये,' तो वह रोगी सचमुच असाध्य बन जायेगा और सहज मृत्यु के मुख में चला जायेगा l किसी परीक्षार्थी विद्यार्थी को कहिये कि 'तुम जरुर फेल हो जाओगे, तुम क्या पर्चों का उत्तर लिखोगे, सर्वथा अयोग्य हो तुम' ,तो उसका उल्लास मर जायेगा और वह या तो परीक्षा में बैठेगा ही नहीं, यदि बैठेगा भी तो निराशमन होने से उत्तर ठीक नहीं लिख सकेगा और असफल हो जायेगा l रण में जाते हुए सैनिकों का उत्साह भंग करने के लिए उन्हें शत्रु कि शक्ति का, उसके रण-कौशल का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन कीजिये और उनको ऐसा विश्वास दिलाइये कि वे अवश्य हारेंगे l ऐसा करने से उनका साहस टूट जायेगा और वे अवश्य ही पराजित होंगे l
इसके विपरीत आप उसके भीतर सोयी हुई सात्विक वृतियों को, शुद्ध शक्तियों को जगाकर उसे उनका ज्ञान करा दें और उसके ह्रदय को उत्साह-उल्लास, सात्विक उमंग से भर दें तो वह दोषों से रहित आदर्श सद्गुणों की खान बन सकता है l
सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]
जैसे किसी साधारण रोगी को डाक्टर-वैद्य तथा देखनेवाले यह कहने लगे कि 'तुम्हारा रोग असाध्य है, तुम अच्छे हो ही नहीं सकते ; करना है सो कर लो पता नहीं कब दम टूट जाये,' तो वह रोगी सचमुच असाध्य बन जायेगा और सहज मृत्यु के मुख में चला जायेगा l किसी परीक्षार्थी विद्यार्थी को कहिये कि 'तुम जरुर फेल हो जाओगे, तुम क्या पर्चों का उत्तर लिखोगे, सर्वथा अयोग्य हो तुम' ,तो उसका उल्लास मर जायेगा और वह या तो परीक्षा में बैठेगा ही नहीं, यदि बैठेगा भी तो निराशमन होने से उत्तर ठीक नहीं लिख सकेगा और असफल हो जायेगा l रण में जाते हुए सैनिकों का उत्साह भंग करने के लिए उन्हें शत्रु कि शक्ति का, उसके रण-कौशल का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन कीजिये और उनको ऐसा विश्वास दिलाइये कि वे अवश्य हारेंगे l ऐसा करने से उनका साहस टूट जायेगा और वे अवश्य ही पराजित होंगे l
इसके विपरीत आप उसके भीतर सोयी हुई सात्विक वृतियों को, शुद्ध शक्तियों को जगाकर उसे उनका ज्ञान करा दें और उसके ह्रदय को उत्साह-उल्लास, सात्विक उमंग से भर दें तो वह दोषों से रहित आदर्श सद्गुणों की खान बन सकता है l
सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]
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