Thursday 8 November 2012

मानसिक दासता


        वास्तव में शारीरिक दासता की अपेक्षा मानसिक दासता कहीं अधिक भयानक और पतनकारक होती है l  आज हम इसी मानसिक दासता के शिकार हो रहे हैं l अंग्रेजों का शासन नहीं रहा, वे यहाँ से चले गए और भारत ने शारीरिक तथा शासन की स्वतंत्रता प्राप्त की; परन्तु अंग्रेजों के रहन-सहन, खान-पान, वेष-भूषा, भाषा-भाव एवं जीवन पद्धति का हमारे ऊपर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उनके जाने के बाद हम और भी अधिक उनकी नक़ल करने लगे l महात्मा गांधीजी के  आन्दोलन के समय देश में कड़ी का धोती-कुर्ता विशेष रूप से फैला था l  धोती-कुर्ता पहनने में लोग गौरव अनुभव करते थे l विभिन्न प्रदेशों में पहले से ही अपना-अपना पहनावा था l  धोती, कुर्ता, मिर्जई, साफा, पगड़ी, टोपी आदि का प्रचलन था l  अब तो चारों ओर सभी प्रदेशों में और सभी अवसरों पर, यहाँ तक कि सामाजिक कार्यों में,धार्मिक समारोहों में और विवाह-शादी आदि में भी पेंट, कोट, बुशर्ट, नेकटाई आदि ही नजर आते हैं; बल्कि इसी में लोग अपनी शान समझते हैं और देशी पोशाक - धोती-कुर्ता पहनने वालों को मानो असभ्य या पिछड़े हुए मानते हैं l  यह मानसिक दासता का प्रत्यक्ष चिन्ह है l जिस जाति में अपनी संस्कृति, अपनी वेष-भूषा, अपने खान-पान, अपने भाषा-भाव के प्रति हेयबुद्धि हो जाती है , वह अंधी होकर दूसरों की नक़ल करती है l  उसे दूसरों की बुरी चीज़ भी अच्छी मालूम होती है और अपनी अच्छी भी बहुत बुरी मालूम होती है l यही कारण है कि आज पवित्र भारतीय संस्कृति के नर-नारी विदेशी पोशाक पहनकर अभिमान करते हैं l  वे मात्रभाषा के बदले अंग्रेजी में बातचीत करना गौरव कि बात मानते हैं l हाथ-पैर धोये बिना जूते पहने खाना, कुर्सी पर बैठकर खाना, हर एक की जूठन खाना, छुरी-कांटे से खाना, प्रणाम आदि न करके अंगुली दिखाना या हाथ मिलाना, बच्चों को माता जी, अम्माजी, पिताजी, बाबूजी आदि कहना न सिखाकर मम्मी, डैडी, पापा कहना सिखाना, खड़े-खड़े मूत्र त्याग करना, खाकर कुल्ले न करना आदि छोटी-बड़ी इतनी बातें हैं,. जिनसे सब प्रकार की हानि होती है, पर हमारा गुलामी से भरा दिमाग इसी में लाभ मानकर उन्हीं को करता-करवाता है l सबसे दुःख की बात तो यह है कि अपनी संस्कृति  की जड़ काटनेवाले इन सब कार्यों में हमारी गौरवबुद्धि हो गयी है  l भगवान् रक्षा करें l

सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]      
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Ram