Friday, 9 November 2012

मंगल सोचो, मंगल करो !



        निश्चय ही, मनुष्य को फलरूप में जो कुछ भी भला-बुरा, अनुकूल-प्रतिकूल प्राप्त हो रहा है, वह उसके अपने ही किये हुए कर्म का फल है; दूसरे तो केवल निमित्तमात्र हैं l  अतएव उन पर रोष करके उनके प्रति मन में द्वेष को स्थान नहीं देना चाहिए l  वे तुम्हारा बुरा करने जाकर वस्तुत: अपना ही बुरा कर रहे है  - अपने लिए आप ही दुखों का निर्माण कर रहे हैं; अतएव दया के पात्र हैं l  फिर तुम्हारे मन में द्वेष होगा तो तुम अन्दर-ही-अन्दर जलते रहोगे, द्वेषाग्नि जलाया करती है और द्वेषवश उनको हानि पहुँचाने की चेष्टा करोगे, जिससे वैर बद्धमूल होगा, तुम्हारे चित्त की अशान्ति बढ़ेगी और तुम्हारी साधन-शक्ति , जो अपने तथा दूसरों के मंगल-सम्पादन में लगती, अमंगल में लगकर सब ओर अमंगल की सृष्टि करती रहेगी l सर्वोत्तम तो यह है कि बुरा करनेवाले का भला करने कि चेष्टा करके तुम अमृत वितरण करो , उसके मन के विष को नष्ट कर दो  l यही संत का आदर्श है- मनुष्य को सदा मंगल सोचना तथा मंगल-कार्य करना चाहिए l प्राणिमात्र का मंगल सोचने,करने वाले का कभी अमंगल नहीं होता l उसका प्रत्येक श्वास मंगलमय बन जाता है l  उससे सूर्य से प्रकाश की भान्ति सहज ही सब को मंगल प्राप्त  होता है  l  उसका बुरा चाहने वालों का मन भी उसकी मंगलमयता से प्रभावित होकर बदल जाता है  l  वह कहीं कदाचित ऐसा भी हो तो उसका अपना अमंगल तो होता ही नहीं l  वहीं बड़ा लाभ है l 
          अतएव तुम मन में भली-भान्ति सोचकर, दूसरे तुम्हारा अहित - अमंगल कर रहे हैं, इस मान्यता को छोड़कर कभी किसी का बुर मत चाहो l  अपने मन को तथा क्रिया को अपना तथा सब का भला सोचने करने में लगाकर सब को सहज ही मित्र बनाने का मार्ग स्वीकार करो l शक्ति का सदुपयोग करके उससे लाभ उठाओ l  कभी उसका दुरूपयोग मत करो l  जो संकट आया है, उसे भगवान् का मंगल-विधान मानकर स्वीकार करो l  उसे टालने की न्याययुक्त चेष्टा करो l  इसके  लिए प्रधान उपाय है - 'सच्चे विश्वास के साथ भगवान् से कातर प्रार्थना  l '    पर ध्यान रहे, प्रार्थना में कभी भी दूसरों का अमंगल न हो l  बुद्धि को स्थिर रखकर भगवान् से यही प्रार्थना करो कि 'नाथ ! किसी का भी कभी तनिक भी अमंगल हो ऐसा विचार मेरे मन में कभी न आये, ऐसी चेष्टा मुझ से कभी न बन पड़े l  सब का मंगल हो एवं उसी के साथ मेरा भी मंगल हो l  मुझ पर जो कष्ट आया है उसे आप हरण कर लें l

सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]          
                            
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Ram