Sunday 2 December 2012

इस युग में नाम-जप ही प्रधान साधन है

   
    संसार-समुद्र से पर होने के लिए कलियुग में श्रीहरि-नाम से बढ़कर और कोई भी सरल साधन नहीं है l भगवन्नाम से लोक-परलोक के सारे अभावों की पूर्ति तथा दुखों का नाश हो सकता है l अतएव संसार के दुःख-सुख,हानि-लाभ, अपमान-मन, अभाव-भाव,विपत्ति-सम्पत्ति, -सभी अवस्थाओं में प्रतिक्षण भवान का नाम लेते रहना चाहिये,विश्वासपूर्वक लेते रहना चाहिये l  नाम साक्षात् भगवान् ही हैं, यों मानना चाहिये l नाम-जप इस युग में सब से बढ़कर भजन है l
       नाम-जप करनेवालों को बुरे आचरण और बुरे भावों से यथासाध्य बचना चाहिए l झूठ-कपट, धोखा-विश्वासघात, छल-चोरी,निर्दयता-हिंसा, द्वेष-क्रोध, ईर्ष्या-मत्सरता, दूषित आचार-व्यभिचार आदि दोषों से अवश्य बचना चाहिये l  एक बात से तो पूरा ख्याल रखकर बचना चाहिये -वह यह कि भजन का बाहरी स्वांग बनाकर इन्द्रिय तृप्ति या किसी भी प्रकार के नीच स्वार्थ का साधन कभी नहीं करना चाहिये l नाम से पाप-नाश करना चाहिये , परन्तु नाम को पापा करने में सहायक कभी  नहीं बनाना चाहिये l नाम जपते-जपते ऐसी भावना करनी चाहिए कि 'प्रत्येक नाम के साथ भगवान् के दिव्य गुण -अहिंसा, सत्य, दया, प्रेम, सरलता, साधुता, परोपकार,सहृदयता, ब्रह्मचर्य,अस्तेय, अपरिग्रह, संतोष, शौच, श्रद्धा, विश्वास आदि मेरे अन्दर उतर रहे हैं और भरे जा रहे हैं l  मेरा जीवन इन दैवी गुणों से तथा भगवान् के प्रेम से ओत-प्रोत हो रहा है l अहा ! नाम के उच्चारण के साथ ही मेरे इष्टदेव प्रभु का ध्यान हो रहा है, उनके मधुर-मनोहर स्वरुप के दर्शन हो रहे हैं, उनकी सौन्दर्य-माधुर्य-सुधामयी त्रिभुवन पावनी ललित लीलाओं की झाँकी हो रही है l  मन-बुद्धि उनमें तदाकारता को प्राप्त हो रहे हैं l '
       मन न लगे तो नाम-भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिये - 'हे नाम-भगवान् ! तुम दया करो, तुम्हीं साक्षात् मेरे प्रभु हो; अपने दिव्य प्रकाश से मेरे अन्तःकरण के अन्धकार का नाश कर दो l मेरे मन के सारे मल को जला दो l तुम सदा मेरी जिह्वा पर नाचते रहो और नित्य-निरन्तर मेरे मन में विहार करते रहो l  तुम्हारे जीभ पर आते ही मैं प्रेमसागर में डूब जाऊं ; सारे जगत को, जगत के सारे सम्बन्धों को, तन-मन को, लोक-परलोक को, स्वर्ग-मोक्ष को भूलकर केवल प्रभु के -तुम्हारे प्रेम में ही निमग्न हो रहूँ l  लाखों जिह्वाओं से तुम्हारा उच्चारण करूँ;  लाखों-करोड़ों कानों से मधुर नाम-ध्वनि को सुनूँ और करोड़ों-अरबों मनों से दिव्य नामानंद का पान  करूँ l  तृप्त होऊं ही नहीं l  पीता  ही रहूँ नाम-सुधा को और उसी में समाया रहूँ l '

सुख-शान्ति का मार्ग[333]   
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram